हमेशा से ही शिअद-भाजपा गठजोड़ के चलते अमृतसर संसदीय सीट पर भाजपा मैदान में कूदती रही है। कई बार अमृतसर संसदीय सीट पर भाजपा भी काबिज रही है, जबकि अधिक बार कांग्रेस के उम्मीदवार विजयी होते रहे हैं।
पहली बार अपने बल पर अमृतसर लोक सभा सीट के चुनाव मैदान में कूदे शिरोमणि अकाली दल के लिए चुनौती बढ़ गई है। हमेशा से ही शिअद-भाजपा गठजोड़ के चलते अमृतसर संसदीय सीट पर भाजपा मैदान में कूदती रही है। कई बार अमृतसर संसदीय सीट पर भाजपा भी काबिज रही है, जबकि अधिक बार कांग्रेस के उम्मीदवार विजयी होते रहे हैं। किसान आंदोलन के मुद्दे को लेकर अकाली भाजपा गठजोड़ टूटने के बाद अमृतसर संसदीय सीट पर अकाली दल बादल और भाजपा अलग-अलग चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतरे हैं। इसके चलते दोनों पार्टियों को वोट बैंक अपने-अपने पक्ष में करने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। चुनाव प्रचार के दौरान चुनावी दंगल में जो हालात अकाली दल के लिए बने हुए हैं, उससे लगता है कि अकाली दल को कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।
अकाली दल को सबसे अधिक मुश्किल तब देखने को मिलती है, जब उनको ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में पदाधिकारी नहीं मिल रहे हैं। करीब तीन माह पहले अकाली दल बादल ने अपने अमृतसर शहरी व अमृतसर ग्रामीण के अध्यक्ष नए नियुक्त किए थे। पार्टी हाईकमान के दबाव के चलते अमृतसर शहरी अध्यक्ष ने पार्टी की इकाई के कुछ पदाधिकारी नियुक्त तो किए हैं, लेकिन उनमें बहुत सारे नए चेहरे हैं। कुछ पदाधिकारी तो ऐसे हैं, जिसका आम लोगों व अपने मोहल्लों में भी आधार नहीं है। शहरी इलाकों में अकाली दल के पास बूथ टीमों को काई ढांचा नहीं है, जो अकाली दल के लिए बड़ी मुसीबत बनी हुई है। अकाली दल को सबसे बड़ी चुनौती का उस वक्त सामना करना पड़ता है, जब उनकी चुनाव प्रचार बैठकों व रैलियों में उनकी आशा के अनुसार वर्कर और आम लोग सुनने के लिए पहुंच रहे हैं।