नहीं पड़ना चाहते पछताना तो, घर में विंड चाइम लगाने से पहले ध्यान रखें ये बाते

बाथरूम घर का एक जरूरी हिस्सा होता है। इस स्थान का संबंध आपके धन लाभ से भी है। वास्तुशास्त्र (Vastu Tips) के मुताबिक, बाथरूम में नीले रंग की बाल्टी रखना बेहद लाभकारी है। इससे सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। बाल्टी को खाली नहीं छोड़ना चाहिए, उसमें हमेशा थोड़ा पानी भरा होना चाहिए। ऐसा करने से धन आगमन बना रहता है।

स्नानघर के दरवाजे के ठीक सामने दर्पण नहीं लगा होना चाहिए, ये अशुभ प्रभाव को बढ़ाता है। जब भी आप स्नानघर का दरवाजा खोलते हैं, तो घर की नकारात्मक ऊर्जा दर्पण से टकराकर दोबारा घर में चली जाती है। देखा जाता है कि हम स्नानघर का प्रयोग करने के बाद उसका दरवाजा खुला छोड़ देते हैं। खुले दरवाजे को शुभ नहीं माना जाता। यह नकारात्मक ऊर्जा को खींचने का काम करता है।

अगर आपके बेडरूम में स्नानघर या शौचालय है, तो उसका दरवाजा हमेशा बंद रखें। वास्तु की मानें, तो बेडरूम और बाथरूम में दो अलग-अलग तरह की ऊर्जाएं होती हैं और इनका आपस में टकराना अच्छा नहीं माना जाता। इसका स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

कैसा होना चाहिए घर का शौचालय

स्नानघर या शौचालय में अगर पानी की बर्बादी होती है, तो यह भी कई तरह के वास्तुदोष (Vastu Tips) उत्पन्न करती है। इससे धन और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती हैं। इससे बचने के लिए नल को हमेशा कस के बंद रखना चाहिए। अगर स्नानघर के नल का पानी टपकता है, तो घर की शांति और धन दोनों टपकते पानी के साथ बहता जाएगा। अगर आप बहते पानी को बचाते हैं, तो आपका चंद्रमा बलवान होगा और शुभ परिणाम मिलेंगे।

आजकल स्नानघर और शौचालय एक साथ बनवाने का चलन हो गया है। लोग इसे आधुनिक जीवनशैली से भी जोड़कर देखते हैं और सही भी मानते हैं। वास्तुशास्त्र में स्नानघर और शौचालय का एक साथ होना सही नहीं माना गया है। इससे परिवार के सदस्यों में मनमुटाव, वाद-विवाद, रोग, आर्थिक समस्या बनी रहती है।

वास्तु के मुताबिक, स्नानघर चंद्रमा का निवास होता है और शौचालय राहु का। चंद्रमा मन और जल है, तो राहु काली छाया और विषय है। दोनों एक साथ होंगे, तो चंद्र और राहु का ग्रहण दोष बन जाएगा। राहु के प्रभाव से स्नानघर का जल विष हो जाएगा और इससे नहाने से स्वास्थ्य संबंधी समस्या उत्पन्न होंगी।

आर्थिक समस्या से बचने के लिए ध्यान रखें कि शौचालय का द्वार उस दिशा में न हो, जो घर के मंदिर या किचन के सामने खुलता हो। स्नानघर उत्तर एवं पूर्व दिशा में और शौचालय दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण और नैत्रत्य के बीच में बनाया जाना चाहिए। लेकिन दोनों को एक साथ संयुक्त रूप से बनाने पर उन्हें पश्चिमी और उत्तरी वायव्य कोण में बनाना श्रेष्ठ है। बाथरूम में फर्श की ढाल, पानी का बहाव उत्तर एवं पूर्व दिशा की ओर ही होना चाहिए।

शौचालय में बैठने की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि शौच करते समय आपका मुख दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर हो। पूर्व में कभी भी नहीं, क्योंकि पूर्व सूर्य देव की दिशा है और मान्यता है कि उस तरफ मुंह करके शौच करते हुए उनका अपमान होता है। इससे जातक को कानूनी अड़चनों एवं अपयश का सामना करना पड़ सकता है।

संयुक्त रूप से बने शौचालय और स्नानघर बनाने या केवल अलग ही स्नानघर पर यह अवश्य ही ध्यान दें कि उसमें पानी के नल, नहाने के शावर ईशान, उत्तर एवं पूर्व दिशा में ही लगाए जाएं और नहाते समय जातक का मुंह उत्तर, ईशान अथवा पूर्व की तरफ ही होना चाहिए।

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