हमारे देश भारत में संस्कृतियों और तहजीबों का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है, जितने त्यौहार और उत्सव हमारे देश में मनाए जाते हैं, उतने शायद दुनिया के किसी भी देश में नहीं मनाए जाते होंगे. हमारा ऐसा ही एक त्यौहार है नवरात्री, जिसमे हम 9 दिनों तक लगातार जगत को उत्पन्न करने वाली और पोषण करने वाली देवी आदिशक्ति की उपासना करते हैं, जिसे माँ के रूप में भी पूजा जाता है. पुरे वर्ष में 4 नवरात्र आते हैं, जिनमे दो गुप्त और दो प्रत्यक्ष होते हैं. पूरा देश इन 9 दिनों को हर्षोल्लास के साथ माता की उपासना करते हुए बिताता है, लेकिन अधिकतर लोगों को ये पता नहीं है कि आखिर नवरात्र उत्सव मनाने की शुरुआत कैसे हुई 
तो आइए हम आपको बताते हैं कि नवरात्र पूजन का रिवाज कहां से शुरू हुआ. इसका जिक्र हमारे पुराणों में मिलता है. मार्केण्डय ऋषि द्वारा रचित देवी पुराण में इसका उल्लेख किया गया है. जिसमे बताया गया है कि जब भगवन विष्णु के अवतार श्री राम की पत्नी और आदिशक्ति की एक रूप माता सीता को रावण हरण करके ले गया था, तो श्री राम बहुत व्याकुल हो गए थे, इसके बाद जब श्रीराम को पता चला कि माता सीता को रावण कैद करके ले गया है तो उन्होंने लंका पर हमला करने का निर्णय लिया.
पहले तो उन्होंने रावण के पास दूत भेजे कि उनकी पत्नी सीता को वापिस कर दे तो उसे प्राणदान दे दिया जाएगा व् उसके पाप भी क्षमा कर दिए जाएंगे, लेकिन मदमत्त रावण ने श्रीराम के प्रस्ताव को ठुकरा दिया, जिसके बाद श्रीराम ने वानरों की सेना इकठ्ठा की और लंका के तात पर जा पहुंचे, रावण को हराने के लिए उन्होंने 9 दिन तक लगातार देवी आदिशक्ति की आराधना की, जिससे प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें विजय होने का आशीर्वाद दिया और दसवें दिन श्रीराम ने रावण का वध कर दिया, इस दिन को दशहरा कहा जाता है. यहीं से 9 दिनों के देवी पूजन की शुरुआत हुई और दसवें दिन दशहरा मनाया जाने लगा, जिसे अधर्म पर धर्म की और असत्य पर सत्य की जीत के रूप माना जाता है.
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