राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ‘राइट टू एजुकेशन’ को 14 साल से बढ़ाकर माध्यमिक स्तर तक ‘एजुकेशन फॉर ऑल’ का महती लक्ष्य रखा गया है। सन 2030 आतेआते 18 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य स्कूली शिक्षा होगी। कम से कम पांचवी क्लास तक की पढ़ाई मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में हो, एनईपी की एक अन्य महत्वपूर्ण अनुशंसा है। शिक्षाशास्त्र के शोध बताते हैं कि मातृभाषा में संज्ञान और सम्प्रेषण सहज एवं शीघ्र होता है। इससे बच्चे रटने की जगह आसानी से जटिल चीजों को भी समझ सकते हैं, जो उनके समग्र संज्ञानात्मक विकास के लिए आवश्यक है। अपवादों को छोड़ दें तो दुनिया के अधिकांश बड़े चिंतक, वैज्ञानिक, आविष्कारक, कवि-रचनाकारों ने अपनी ही भाषा में आरंभिक शिक्षा पाई है।
आज की स्कूली शिक्षा ज्यादा जोर शैक्षणिक पाठ्यक्रम पर है। एनईपी पाठ्येतर क्रियाकलापों और वोकेशनल शिक्षा पर भी जोर देती है। वर्तमान के मैकाले मॉडल की शिक्षा नौकरी ढ़ूढने वाले बेरोजगारों की बड़ी फौज तैयार कर रही है, लेकिन गांधीजी के श्रमसिद्धांत के अनुरूप अब छठी क्लास से ही वोकेशनल कोर्स शुरू किए जाएंगे। ‘कोडिंग’ जैसे आधुनिकतम वोकेशनल प्रशिक्षण छठी क्लास से ही उपलब्ध होंगे। महत्वपूर्ण है कि वोकेशनल शिक्षा के आधुनिकतम कोर्सेस के साथ-साथ स्थानीय भारतीय ‘लोक विद्या’ कॉलेज में भी उपलब्ध होंगे। नया मॉडल युवाओं की बड़ी तादाद के लिए स्वरोजगार और स्व-उद्यम की दिशा में उपयोगी साबित होगा। यूरोप या अमेरिका जैसे विकसित देशों में वोकेशनल शिक्षा पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा होती है। विद्यालयी शिक्षा में स्ट्रीम के बंटवारे में लचीलापन होगा। अर्थात कॉमर्स या विज्ञान का छात्र मानविकी के विषय भी पढ़ सकेगा। महत्वपूर्ण है कि यह लचीलापन ग्रेजुएशन स्तर पर भी होगा।
अमेरिका, यूरोप, जापान आदि में बहुत पहले से मौजूद यह पैटर्न अंर्तिवषयक और समन्वित दृष्टि पैदा करेगी, जो मल्टी-टास्किंग अथवा एकीकृत शोध के लिए आवश्यक है। ग्रेजुएशन प्रोग्राम की एक नई विशेषता मल्टी-एंट्री और मल्टीएक्जिट होगी। अभी तीन साला ग्रेजुएशन प्रोग्राम में किन्हीं कारणों से अगर छात्र को बीच में ही पढ़ाई छोड़ना पड़े तो सारा परिश्रम, धन तथा समय बेकार चला जाता है। अब एक साल अथवा दो साल में भी पढ़ाई छोड़ने पर उसे र्सिटफिकेट या डिप्लोमा जरूर मिलेगा। यहीं नहीं,बाद में आकर वह बची पढाई पूरा कर सकता है। तीन साल की पढ़ाई के बाद बैचलर डिग्री मिलेगी। एनईपी में 4 वर्षीय ‘बैचलर विद रिसर्च’ डिग्री का भी प्रावधान है, जो आगे मास्टर्स या रिसर्च करने वालों के लिए आवश्यक है।
देश में युवाओं की बड़ी तादाद के रचनात्मक उपयोग करने के लिए उच्च शिक्षा में 2035 तक 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ी जाएंगी। गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा के लिए उन्हें भटकना न पड़े इसके लिए 2030 तक लगभग हर जिले में कम से कम एक बहुविषयक वृहत उच्च शिक्षा संस्थान होगा। इसके अतिरिक्त ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स’ नामक एक डिजिटल क्रेडिट बैंक की स्थापना एक अन्य अहम बिंदु है, जिसके द्वारा किसी एक प्रोग्राम या संस्थान में प्राप्त क्रेडिट (अंक) को दूसरी जगह स्थानांतरित किया जाएगा। किन्हीं मजबूरी में शहर-संस्थान बदलने वाले छात्रों के लिए यह बहुत उपयोगी होगा।
एससी-एसटी, ओबीसी और गरीब वर्ग के मेधावी छात्रों के लिए सार्वजनिक के अलावा निजी क्षेत्रों के उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रवृति व मुफ्त शिक्षा के प्रयास किए हैं। निजी संस्थानों की फीस की मनमानी बंद करने के लिए कैपिंग का भी अहम प्रावधान है। सार्वजनिक या निजी सभी संस्थानों के ऑडिट और प्रकटीकरण के समान मानक होंगे। उच्च शिक्षा में समग्र व एकीकृत नीति-लक्ष्य निर्धारण हेतु एक सिंगल रेगुलेटर ‘भारत उच्च शिक्षा आयोग’ (एचईसीआइ) का गठन, शोध अनुसंधान को एक मजबूत करने के लिए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ़) की स्थापना और एनईपी के व्यापक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए जीडीपी का 6 फीसद शिक्षा में लगाने का प्रावधान अन्य प्रमुख बिंदु हैं। ‘सही समय पर सही कदम’ को चरितार्थ करती हुई एनईपी 21वीं सदी के भारत में गांधीजी के राम-राज्य के स्वप्न को साकार करने में सक्षम है। चुनौती अब क्रियान्वयन की है।