केंद्र सरकार के द्वारा देश की नई शिक्षा नीति जारी कर दी गई है. बुधवार को जारी हुई इस नीति के बाद से ही भाषा को थोपने का आरोप लग रहा है, क्योंकि इसमें स्थानीय भाषाओं को महत्व देने की बात कही गई है. इस विवाद पर अब शिक्षा नीति का ड्राफ्ट तैयार करने वाली कमेटी के चेयरपर्सन के. कस्तूरीरंगन का बयान सामने आया है. उन्होंने कहा है कि किसी पर भी कोई भाषा नहीं थोपी जा रही है.
के. कस्तूरीरंगन की ओर से कहा गया कि नई शिक्षा नीति में अलग-अलग भाषाओं पर ही जोर दिया गया है, किसी पर कोई भी भाषा थोपी नहीं जा रही है. हालांकि, छोटे बच्चों को शुरुआती लेवल पर स्थानीय भाषा में पढ़ाई पर उन्होंने कहा कि इससे बच्चे को सीखने में आसानी होगी और उनका ज्ञान बढ़ेगा.
इसके साथ ही उन्होंने भरोसा दिलाया कि हमारी ओर से शुरुआती वर्षों की पढ़ाई में भाषा के स्तर पर लचीलापन रखा जाएगा, कोई भी चीज थोपी नहीं जाएगी.
नई नीति के मुताबिक, पांचवीं क्लास तक बच्चों को स्थानीय भाषा में पढ़ाई करवाई जाएगी. इसे आठवीं तक भी बढ़ाया जा सकता है, ऐसे में लगातार इस नियम पर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे थे. बता दें कि इससे पहले कई बार तीन भाषा के फॉर्मूले पर विवाद हुआ था, जिसमें दक्षिण के राज्यों की ओर से आवाज उठाई गई थी.
हालांकि, स्थानीय भाषा के सिस्टम में राज्य सरकारों को क्षेत्रीय या फिर राज्य की भाषा में शुरुआती पढ़ाई करवाने की इजाजत होगी.
आपको बता दें कि मोदी सरकार ने बुधवार को ही नई शिक्षा नीति जारी की है, 34 साल बाद शिक्षा नीति में इतना बड़ा बदलाव किया गया है. सरकार की ओर से शिक्षा नीति को लेकर 2 समितियां बनाई गई थीं, एक टीएसआर सुब्रमण्यम समिति और दूसरी डॉ. के कस्तूरीरंगन समिति बनाई गई थी. जिनके सुझावों के आधार पर ही नई नीति में बदलाव किया गया है.