तृणमूल कांग्रेस द्वारा सरस्वती पूजा मनाने की कवायद ममता बनर्जी के नए सॉफ्ट हिंदुत्व का हिस्सा माना जा रहा है. जहां टीएमसी एक ओर तुष्टिकरण की छवि को बसंत पंचमी के रंग से धोने की कोशिश में है तो दूसरी ओर जनसंपर्क बढ़ा रही है.
पिछले एक साल में ममता सरकार ने कई ऐसी योजनाएं और घोषणाएं की हैं जो साफ बताती हैं कि चुनाव से पहले ममता सॉफ्ट हिंदुत्व की छवि बनाने की कोशिश में जुटी हैं.
दरअसल, ममता बनर्जी को इस बात का अहसास है कि उनका अल्पसंख्यक वोट तो तय है, लेकिन आशंका हिंदू वोटर खिसकने की है. पिछले कुछ दिनों में ममता की राजनीति को अगर देखा जाए तो पहले ममता ने जय श्री राम के मुकाबले जय सियाराम का नारा खड़ा करने की कोशिश की. इसके बाद जय श्री राम के मुकाबले देवी दुर्गा को खड़ा किया गया और अब जगह-जगह टीएमसी सरस्वती पूजा कर रही है.
इससे पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दुर्गा पूजा में दुर्गा पूजा कमेटियों के लिए 50 हजार रुपये प्रत्येक क्लब को देने की घोषणा की थी. इसके बाद ममता ने पुरोहित भत्ता देने की घोषणा की, जिसमें 8 हजार पुरोहितों को एक हजार रुपये देने की व्यवस्था है.
ऐसे में चुनाव के दरवाज़े खड़े बंगाल की सियासी लड़ाई अब धर्म युद्ध में तब्दील होती दिखाई दे रही है. आज पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी में सरस्वती पूजा मनाने को लेकर होड़ लगी हुई है. एक ओर जहां तृणमूल कांग्रेस पूरे पश्चिम बंगाल में जोर-शोर से सरस्वती पूजा मनाने उतर चुकी है वहीं बीजेपी भी इस दौड़ में पीछे नहीं है.
हाल ही में टीएमसी छोड़कर बीजेपी में आए शुभेंदु अधिकारी से लेकर दिलीप घोष तक सभी लोग सरस्वती पूजा मना रहे हैं. दिलीप घोष का मानना है कि टीएमसी के पास अब कोई मुद्दा नहीं है इसलिए वह धार्मिक बातें कर रही है.
सरस्वती पूजा के बारे में दिलीप घोष कहते हैं कि टीएमसी के शासनकाल में दुर्गा पूजा और सरस्वती पूजा नहीं करने दी गई, इसीलिए अब चुनाव से पहले टीएमसी पाप का प्रायश्चित कर रही है.
वहीं टीएमसी सरकार में पावर मिनिस्टर शोभन देव चट्टोपाध्याय खुद कोलकाता में टीएमसी पार्टी से ऑफिस में सरस्वती पूजा करते नजर आए. उन्होंने बीजेपी पर पलटवार करते हुए कहा कि ममता बनर्जी हर धर्म को मानती हैं, हर पूजा यहां होती है और बीजेपी उन पर तुष्टिकरण का झूठा आरोप लगाती है.