धर्म और अधर्म की लड़ाई में क्यों चुना गया कुरुक्षेत्र की भूमि, जानिए इसका रहस्य

जब दुनिया का प्रथम विश्वयुद्ध महाभारत होने का निश्चय हुआ तो उसके लिए जमीन की खोज जारी की गई और यह जिम्मेदारी श्री कृष्ण जी की थी कि वे ऐसी जगह चुने जिसका इतिहास बहुत ही भयभीत और कठोर रहा हो, जहाँ क्रोध और द्वेष के संस्कार पर्याप्त मात्रा में हों| क्योंकि महाभारत का युद्ध धर्म के लिए आपस के परिजनों भाई-भाइयों में , गुरु शिष्य में, सम्बन्धी कुटुम्बियों में एक दूसरे से ही होना था|
इसीलिए कृष्ण का विचार था की योद्धाओं में एक दूसरे के प्रति कठोरता का भाव शिखर पर हो| तभी कृष्ण एक ऐसी भयभीत और कठोर इतिहास वाली ज़मीन पर युद्ध चाहते थे| युद्ध भूमि के चुनाव के लिए कृष्ण ने चारों दिशाओं में अपने दूत भेजे और कहा कि वहाँ की घटनाओं का वर्णन आकर उन्हें सुनाए|

एक दूत ने श्री कृष्ण को आकर बताया कि एक स्थान है जहाँ बड़े भाई ने छोटे भाई को खेत की मेंड़ से बहते हुए वर्षा के पानी को रोकने के लिए कहा| परन्तु छोटे भाई ने स्पष्ट इनकार कर दिया और धिक्कारते हुए कहा कि आप ही क्यों नहीं बंद कर देते| मैं आपका गुलाम या नौकर नहीं हूँ जो आपकी हर आज्ञा का पालन करूँ| छोटे भाई के मुँह से यह सब सुनकर बड़ा भाई आग बबूला हो गया| क्रोध में आकर उसने छोटे भाई को छुरे से मार डाला और उसकी लाश को पैर पकड़कर घसीटता हुआ उस मेंड़ के पास ले गया और जहाँ से पानी निकल रहा था वहाँ उस लाश को पैर से कुचल कर लगा दिया|

इस महापाप और अत्याचार को सुनकर श्रीकृष्ण ने निश्चय किया यह भूमि भाई-भाई के युद्ध के लिए उपयुक्त है| यहाँ पहुँचने पर उनके मस्तिष्क पर जो प्रभाव पड़ेगा उससे परिजनों के बीच प्रेम उत्पन्न होने की सम्भावना न रहेगी| यह स्थान कोई और नहीं कुरुक्षेत्र ही था जहाँ बड़े बड़े सूरवीरों का अंत हुआ|

जानकारों द्वारा बताया गया कि कुरुक्षेत्र भूमि इंद्र के वरदान से यह भूमि मोक्षप्राप्ति जगह भूमि बन गई| इस भूमि में मरने वाले प्रत्येक व्यक्ति, जीव, जंतु, पक्षी आदि को मुक्ति मिलना संभव था| ऋषियों, गुरुओं, वीर योद्धाओं को मोक्ष दिलाने के कारणवश महाभारत युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र भूमि का चुनाव किया गया| इस जगह अधर्मी होते हुए भी जितने लोगों की मौत हुई उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई| 

महाभारत की यह कथा सन्देश देती है की शुभ और अशुभ विचारों एवं कर्मों के संस्कार भूमि में देर तक समाये रहते हैं| इसीलिए ऐसी भूमि में ही निवास करना चाहिए जहाँ शुभ विचारों और शुभ कार्यों का समावेश रहा हो|

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