सरस्वती नदी को देश की प्राचीनतम नदियों में शुमार किया जाता है। माना जाता है कि वैदिक काल में सरस्वती नदी के तट पर ही ऋषियों ने वेदों की रचना की। इस कारण सरस्वती को विद्या और ज्ञान की देवी के रूप में भी पूजा जाने लगा। आज भी यह श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।
आदिबद्री से लेकर पंजाब में घग्गर-सरस्वती के मुहाने तक चिह्नित की गई सरस्वती नदी की 23 धाराएं अब धरोहर के रूप में सहेजी जाएंगी। सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड यमुनानगर, कुरुक्षेत्र और कैथल में स्थित इन धाराओं के विकास का खाका तैयार करने में जुटा है। इन्हें विकसित करने में संबंधित ग्राम पंचायतों से लेकर सामाजिक, धार्मिक और अन्य संस्थाओं का भी सहयोग लिया जाएगा। ये धाराएं विकसित होने से न केवल सरस्वती के प्रति लोगों की आस्था बढ़ेगी बल्कि ये पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र भी बनेंगी।
सरस्वती नदी को देश की प्राचीनतम नदियों में शुमार किया जाता है। माना जाता है कि वैदिक काल में सरस्वती नदी के तट पर ही ऋषियों ने वेदों की रचना की। इस कारण सरस्वती को विद्या और ज्ञान की देवी के रूप में भी पूजा जाने लगा। आज भी यह श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। यही वजह है कि समय के साथ विलुप्त हो चुकी सरस्वती को फिर से धरा पर लाने के लिए प्रदेश सरकार की ओर से तमाम प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड भी स्थापित किया गया है।
बोर्ड ने जब सरस्वती के जीर्णोद्धार के लिए इसके प्रवाह को चिह्नित करना शुरू किया तो अलग-अलग जगहों पर 23 धाराएं सामने आईं, जहां से सरस्वती का प्रवाह माना गया है। अधिकारिक तौर पर इन धाराओं को चिह्नित और अधिसूचित भी किया जा चुका है। बोर्ड की ओर से अब इन्हें धरोहर के तौर पर सहेजने और पर्यटन के रूप में विकसित करने का फैसला लिया है, जिस पर कार्य भी शुरू कर दिया गया है।
दो फेज में किए जाएंगे कार्य, दूसरे के तहत विकसित की जाएंगी धाराएं : अरविंद कौशिक
सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड के अधीक्षक अभियंता अरविंद कौशिक का कहना है कि सरस्वती को दो फेज में धरा पर पूरी तरह से लाए जाने का प्लान बनाया गया है। पहले फेज में हिमाचल प्रदेश के क्षेत्र में आदिबद्री बांध, सरस्वती बैराज व रिजर्व वाॅयर का कार्य पूरा किया जाएगा। दूसरे फेज में मुख्य तौर पर सभी 23 धाराएं ऐतिहासिक, पौराणिक व धार्मिक महत्ता के अनुसार विकसित की जाएंगी। इसके लिए पूरा खाका तैयार किया जा रहा है।
जैसी मान्यता उसी अनुसार किया जाएगा विकास
बोर्ड द्वारा की जा रही तैयारी के मुताबिक, सरस्वती की धाराओं को उनकी व आसपास के स्थल की मान्यता के अनुसार ही विकसित किया जाएगा। उस स्थल की ऐतिहासिक व पौराणिक महत्ता को केंद्रित करते हुए इस तरह से विकास किया जाएगा कि यहां श्रद्धालु और पर्यटक आकर्षित हो सकें और उन्हें वास्तविकता का आभास हो।
जिला अनुसार ये धाराएं हैं चयनित
कुरुक्षेत्र : बोडला, खानपुर, नरकातारी, ज्योतिसर, भौर, सुरमी, संधौली, टिकरी, जुरासी कलां, प्राची तीर्थ, सतौड़ा, संतपुरा, बीड़ बरासन, स्योंसर।
यमुनानगर : रूलाहेड़ी, भोगपुर, जागधौली, खेड़ा कलां, फतेहपुर, साहिबपुरा।
कैथल : हरनौला, आंधली, लदाना चक्कू।