दून शहर की बड़ी आबादी के सिर पर चौबीस घंटे ‘मौत’ लटक रही है। मामूली चपेट भर से शरीर का खून चूस लेने वाले तीव्र करंट के बीच लोग टेंशन में दिन गुजार रहे हैं। हाईटेंशन लाइन की यह टेंशन कभी भी वज्रपात के समान उन पर गिरने से नहीं चूकती।
विभाग ने जैसे-तैसे इस टेंशन कम करने के उपाय किए हैं, लेकिन वे नाकाफी साबित हो रहे हैं। लाइनों से बचने के लिए आम आदमी ऊर्जा निगम के चक्कर काटते हुए अपनी चप्पलें घिस देता है, मगर लाइन शिफ्ट नहीं हो पाती।
हाईटेंशन तार कई स्थानों पर काफी नीचे तो कई जगह लोगों के घरों के ठीक ऊपर से गुजर रहे। यह तो जांच का विषय है कि पहले हाईटेंशन लाइन खींची गई अथवा या फिर पहले उसके नीचे घर बने। अगर मान लिया जाए कि पहले लाइन खींची गई और घर का निर्माण बाद में कराया गया, तो जब घर बन रहा था, उस वक्त संबंधित विभाग के अधिकारी कहां थे।
शहर में चंद्रबनी से सेवलाकलां, मोहब्बेवाला, दीपनगर, डिफेंस कालोनी, मोथरोवाला, बंजारावाला से लेकर देहराखास, रायपुर, अधोईवाला, चूनाभट्टा, बद्रीश कालोनी, पथरिया पीर, कारगी चौक, पटेलनगर, माजरा, नेशविला रोड व गढ़ीकैंट समेत हरिद्वार बाईपास के दर्जनों मोहल्ले में घरों के कुछ ही ऊपर से गुजरते व लटकते हुए हाईटेंशन तार हजारों लोगों की आबादी को डरा रहे हैं। यहां हाईटेंशन लाइनें हजारों मकानों से सिर्फ हाथ भर की दूरी पर लटक रहीं। उदाहरण, सेवलाकलां, दीपनगर आदि में देखे जा सकते हैं। कई जगह तार काफी नीचे लटक गए हैं। अक्सर टूटकर गिरने से कई बार हादसे हो चुके हैं।
कहीं विभागों ने भी चूक कर घर और इमारत बनने के बाद रातों-रात एलटी, हाईटेंशन लाइनें बिछा डालीं। ऊर्जा निगम के आंकड़ों पर गौर करे तो बीते एक साल में 461 लोगों ने लाइन शिफ्ट करने के लिए आवेदन किया।
विभाग ने प्रयास करते हुए इनमें सिर्फ 168 लाइनों की शिफ्टिंग तो कर दी, लेकिन 283 लाइनों को शिफ्ट किए जाने का काम महीनों से चल रहा है। बजट का रोना भी निगम रो रहा। बताया गया कि जो लाइनें शिफ्ट की गईं, उन पर 14 करोड़ 30 लाख 79 हजार रुपये खर्च हुए, जबकि लाइन शिफ्टिंग के 10 मामले विवादित होने की वजह से लटके हुए हैं।
सब स्टेशन के ऊपर से गुजर रही लाइन
विद्युत वितरण खंड मोहनपुर के अंतर्गत सब स्टेशन के ऊपर से ही 33 केवी हाई टेंशन लाइन गुजर रही है। इससे कौलागढ़ को विद्युत आपूर्ति की जाती है। इस दफ्तर में एसडीओ का कार्यालय है। यह इमारत बिजली विभाग की है इसको लेकर ऊर्जा निगम ने चुप्पी साध रखी है।
इमारत बनाने और लाइन बिछाने का काम विभाग ने ही किया। ऐसे में कोई भी अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं। अधिशासी अभियंता सुधीर कुमार का कहना है कि ये पता करना होगा कि निर्माण की इमारत पहले या बाद में बनी है।
इमारत बनाने के लिए ऊर्जा निगम की अनापत्ति जरुरी होती है कि ऊपर से एलटी, हाई टेंशन लाइन तो नहीं गुजर रही है। इसी तरह ऊर्जा निगम के लाइनमैन, जेई, एई, एसडीओ, ईई तक भारी भरकम फोर्स भी इसकी निगरानी करती है। फिर भी धड़ल्ले से निर्माण होते चले गए इन पर किसी का ध्यान नहीं गया या विभाग ने आंखें मूंद ली। यह ऊर्जा निगम और संबंधित विभागों एमडीडीए पर भी सवाल खड़ा करता है।
ऊर्जा निगम के अनुसार लाइन शिफ्ट करने में भारी खर्च होता है। इससे बचने के लिए शासनादेश जारी हुआ कि आबादी क्षेत्रों में जहां भी लाइनें शिफ्ट की जाएंगी, वहां तीस फीसद खर्च विधायक अथवा सांसद निधि से वसूला जाएगा। वहीं, इसका 35 फीसद खर्च राज्य सरकार व 35 फीसद निगम को उठाना होगा।
गार्डिंग से टल सकती है दुर्घटना
लाइनों के दूरी, ऊंचाई के मानक
- ओवरहेड या भूमिगत विद्युत लाइनों के निर्माण के बाद आसपास किसी भी भवन, फ्लड बैंक, सड़क के निर्माण के लिए मैप बनाकर विद्युत विभाग से अनुमति लेना जरुरी है
- इमारत से एलटी व एचटी लाइन 11 केवी की सामांतर दूरी 1.20 मीटर और लंबवत दूरी 2.50 मीटर
- इमारत से 33 केवी लाइन की सामांतर दूरी 2 मीटर और लंबवत दूरी 3.70 मीटर
- सड़क के आर पार दशा में ओवरहेड एलटी लाइन की जमीन से ऊंचाई 5.8 मीटर
- सड़क के आर पार दशा में ओवरहेड 11 से 33 केवी लाइन की जमीन से ऊंचाई 6.1 मीटर
- सड़क किनारे एलटी लाइन की जमीन से ऊंचाई 5.5 मीटर
- सड़क किनारे 11 से 33 केवी एचटी लाइन की जमीन से ऊंचाई 5.8 मीटर
- सड़क के अतिरिक्त क्षेत्र में एलटी से 11 केवी तक इंसुलेटेड लाइन की जमीन से ऊंचाई 4 मीटर
- सड़क के अतिरिक्त क्षेत्र में एलटी से 11 केवी तक बिना इंसुलेटेड लाइन की जमीन से ऊंचाई 4.60 मीटर
- सड़क के अतिरिक्त क्षेत्र में 33 केवी लाइन की जमीन से ऊंचाई 5.20 मीटर
बीसीके मिश्र (प्रबंध निदेशक, पावर कारपोरेशन लिमिटेड) का कहना है कि एलटी, हाईटेंशन के अधिकांश मामलों में हैं कि लाइनें पहले बिछाई गई बाद में लोगों ने भवन बनाए। फिर लाइन शिफ्ट करने की बातें होती हैं। यदि पहले से ही विभाग संग समन्वय किया जाए तो समस्या नहीं होगी। आज विद्युत पोल लगाने के लिए जमीन देने को कोई तैयार नहीं होता है। फिर भी लाइन शिफ्ट पर काम किया जाता है। इसमें बजट काफी लगता है इसलिए बजट के आधार पर काम होते हैं।