मध्य प्रदेश में नंदी का अस्तित्व खतरे में है। पहले ट्रैक्टरों व अन्य मशीनों ने उनका काम करना शुरू कर दिया तो किसानों ने बैल पालना बंद कर दिया।
कृत्रिम गर्भाधान शुरू होने के बाद गर्भाधान में भी उनकी जरूरत कम हो गई है। अब सरकार भी पशुपालकों को यह विकल्प दे रही है कि वे चाहें तो उनकी गाय या भैंस से सिर्फ बछड़ी पैदा कर सकते हैं।
हर किसान को दुधारू पशु की जरूरत है। फिर वह क्यों बछड़ा पैदा करेगा? ऐसे में पशुपालकों की आर्थिक सेहत भले ही बेहतर हो जाए, लेकिन पारिस्थितिकी तंत्र (इकोलॉजी) बिगड़ सकता है।
प्राकृतिक तौर पर गाय-भैंस के गर्भाधान होने पर मेल या फीमेल संख्या आधी-आधी रहने का अनुमान रहता है। राज्य सरकार अब ऐसी तकनीक लेकर आ रही है, जिसमें पशुपालक गाय-भैंस के गर्भाधान में बछड़े या बछिया का चुनाव कर सकेंगे।
इसमें 95 फीसदी आसार इसके होंगे कि उनकी पसंद के मुताबिक ही संतान का जन्म होगा। इसके लिए मप्र सरकार ने अमेरिकी कंपनी एसपी जेनेटिक्स से तीन साल के लिए करार किया है।
भोपाल के भदभदा इलाके में अमेरिकी कंपनी की मदद से एक लैब बनाई जा रही है। भवन, उपकरण व तकनीक को मिलाकर पूरे प्रोजेक्ट में 48 करोड़ रुपए खर्च होंगे।
इसमें 60 फीसदी राशि भारत सरकार मिला रही है। इस तकनीक से पहले साल दो लाख व बाकी दो सालों में तीन-तीन लाख डोज सीमन बनाया जा सकेगा।
अभी देश में सिर्फ उत्तराखंड में इस तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। प्रदेश के बुलमदर फार्मों में 158 सांड व 48 पाड़े हैं। इनमें एक से हर दिन 200 से 250 डोज सीमन का उत्पादन किया जा सकता है।
मध्य प्रदेश के पशुपालन विभाग के अफसरों ने बताया कि भैंसों में मुर्रा, भदावरी, जाफराबादी आदि व गायों में गिर, साहीवाल, जर्सी, एचएफ, मालवी, निमाड़ी आदि का सीमन कृत्रिम गर्भाधान केन्द्रों में उपलब्ध रहेगा।
अभी गर्भाधान में एक डोज के लिए पशुपालकों से सिर्फ 20 रुपए लिया जाता है। अब वह पसंद के अनुसार सीमन इंजेक्शन के डोज लेंगे तो 350 से 400 रुपए तक शुल्क देना होगा।
– इंसान हो जानवर लिंग निर्धारण का काम मेल के स्पर्म से होता है।
– फीमेल में एक्स-एक्स और मेल में एक्स-वाई क्रोमोसोम होता है।
– एक्स-एक्स क्रोमोसोम के मिलने से फीमेल व एक्स-वाई क्रोमोसोम से मेल संतान होती है।
– नई तकनीक से मेल-फीमेल पैदा करने के अलग-अलग डोज तैयार किए जाएंगे।