देश की सबसे ताकतवर जांच एजेंसियों में से एक सीबीआई में नंबर-1 और नंबर-2 की लड़ाई चर्चा में है। भारी फजीहत के बाद सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया गया है। एम. नागेश्वर राव को अंतरिम चीफ नियुक्त किया गया है। यहां हम बताएंगे कि आखिर आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना की लड़ाई कहां से शुरू हुई थी और दोनों के बीच इतना मनमुटाव क्यों था
– आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के बीच इस विवाद की शुरुआत होती है अक्टूबर 2017 से। तब पांच सदस्यीय सीवीसी की बैठक में अस्थाना ने वर्मा को स्पेशल डायरेक्टर बनाए जाने का विरोध किया था।
– वर्मा का आरोप था कि अस्थाना अपने बॉस के निर्देशों का पालन नहीं करते हुए मनमाने तरीके से काम करते हैं। इसके अलावा सीबीआई को स्टरलिंग बायोटेक केस में भी अस्थाना की संदिग्ध भूमिका के बारे में पता चला था।
– हालांकि, पैनल ने वर्मा की आपत्ति को खारिज कर दिया और अस्थाना का प्रमोशन हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने भी वर्मा की याचिका खारिज करते हुए अस्थाना को क्लिनचिट दे दी।
– 24 अगस्त को अस्थाना ने सीवीसी को चिट्ठी लिखकर वर्मा और उनके कुछ साथियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। अस्थाना ने सीवीसी के साथ ही कैबिनेट सचिव को लिखी चिट्ठी में साफ-साफ कहा कि मोईन कुरैशी केस में वर्मा को हैदराबाद के बिजनेसमैन सतीष बाबू सना द्वारा 2 करोड़ रुपए की रिशवत दी गई।
– इसके अगले हफ्ते भी अस्थाना ने सीवीसी और कैबिनेट सचिव को चिट्ठी लिखी कि वे सना को गिफ्तार करना चाहते थे, लेकिन वर्मा ने ऐसा नहीं होने दिया। इतना सब होने तक वर्मा ने कई अहम केस अस्थाना से छिन लिए थे। जिनमें दिल्ली सरकार के केस, आईआरसीटीसी घोटाला, पी. चिदंबरम के खिलाफ जांच के केस शामिल थे। यही नहीं, अब तक अस्थाना के साथ काम कर रहे स्टाफ का भी ट्रांसफर कर दिया गया।
– 4 अक्टूबर को सीबीआई ने एक मजिस्ट्रेट के सामने सना का बयान लिया, जिसमें उसने कहा कि उसने पिछले 10 महीनों में अस्थाना को 3 करोड़ रुपए चुकाए। 15 अक्टूबर को सीबीआई ने इसी बयान के आधार पर अस्थाना के खिलाफ केस दर्ज कर लिया।
– मामला दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचा तो मंगलवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने अस्थाना के खिलाफ केस उसी स्थिति में रोकने को कहा। इसके बाद सरकार ने दखल दिया और वर्मा और अस्थाना को 24 अक्टूबर तक छुट्टी पर भेज दिया।