दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद अब बिहार की बारी है। राष्ट्रीय राजधानी में चुनाव प्रचार खत्म होते ही सभी दलों के प्रमुख नेता अब बिहार लौट रहे हैं। संगठन को दुरुस्त करते हुए सबको अपनी टीम को सामयिक बनाना है। राज्य की राजनीति पिछले दो दशकों से गठबंधन के आधार पर चल रही है।
भाजपा-जदयू और लोजपा की ताकत एक तरफ है तो दूसरी तरफ महागठबंधन की महत्वाकांक्षा। पहले खेमे का नेतृत्व नीतीश कुमार कर रहे हैं, जबकि दूसरे खेमे का नेतृत्व लालू प्रसाद करते आ रहे थे। लालू की गैर-हाजिरी में उस खेमे की कमान तेजस्वी यादव के हाथ में है।
जदयू-भाजपा की मजबूत हुई गांठ
प्रशांत किशोर और पवन वर्मा को बाहर का रास्ता दिखाकर जदयू ने भाजपा के साथ अपने सारे गतिरोध दूर कर लिए। जदयू ने अपने स्तर से दो सौ विधानसभा क्षेत्रों में सांगठनिक सम्मेलन कर लिया है। जदयू के राष्ट्रीय महासचिव आरसीपी सिंह के मुताबिक नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग की सरकार बनाने के लिए जदयू का संगठन बूथ स्तर पर स्थापित हो चुका है। करीब 72 हजार बूथों पर जदयू के बूथ अध्यक्षों की तैनाती भी कर दी गई है। भाजपा अपने संगठन को धार देने में जुटने वाली है।
दिल्ली में सहायक चुनाव प्रभारी की हैसियत से करीब महीने भर से सक्रिय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय और संगठन महामंत्री राधामोहन शर्मा रविवार को पटना लौटेंगे।
महागठबंधन में सबसे ज्यादा हरकत
पांच घटक दलों वाले महागठबंधन को लेकर सबसे ज्यादा उत्सुकता है। जगदानंद सिंह के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद राजद का आंतरिक अनुशासन तो मजबूत हुआ है, किंतु साथी दलों से तालमेल पटरी से उतरता नजर आ रहा है। अभी तक कोई संयुक्त बैठक नहीं हो पाई है। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी की ओर से दवाब बनाने के बावजूद अभी तक समन्वय समिति का गठन नहीं हो पाया है।
तेजस्वी यादव के दिल्ली में प्रचार से फुर्सत मिलने के बाद अब माना जा रहा है कि महागठबंधन में भी एकजुटता का संचार होगा। किंतु इसके पहले तेजस्वी को अपने आंतरिक मोर्चे को दुरुस्त करने पड़ सकते हैं, जहां जिला से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर कमेटियों का गठन अभी तक नहीं हो पाया है।