पाकिस्तान से अपने वतन तो आ गए हैं, लेकिन बीते 10 साल से अब भी शरणार्थी मूलभूत सुविधाओं की राह ताक रहे हैं। यहां न पीने का पानी पूरी तरह से मयस्सर है और न ही बिजली की सुविधा है।
मजनू का टीला स्थित हिंदू शरणार्थी कैंप में रहने वाले मदन दास यह बताते हुए मायूस हो जाते हैं। वह कहते हैं कि नागरिकता तो मिल रही है, लेकिन नागरिक सुविधाएं कब मिलेंगी कुछ पता नहीं है। आलम यह है कि शौचालय से भी शरणार्थी बस्ती वंचित है। उन्होंने कहा कि कई लोगों को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू होने के बाद नागरिकता मिली है। कुछ लोगों के दस्तावेज की जांच चल रही है। ऐसे में शरणार्थियों में कई के आधार कार्ड व मतदाता कार्ड तो बन गए, लेकिन सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है।
उबड़-खाबड़ रास्ता, कच्ची संकरी गलियां, बेतरतीब तरीके से बनीं झुग्गियां, खुले में फैला कचरा व बहता गंदा पानी… यह नजारा है मजनू का टीले के पास स्थित पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी बस्ती का। सुविधाओं के अभाव में लंबे समय से रह रहे शरणार्थियों का कहना है कि बस्ती की कब तस्वीर बदलेगी। मजबूत इरादों के साथ यहां आए हैं, लेकिन सरकार की योजनाओं और मूलभूत सुविधाओं से अब भी दूर हैं। यह शरणार्थी वर्ष 2011 में पाकिस्तान से आए हैं।
पाकिस्तान के सिंध प्रांत से वर्ष 2013 में आए कैंप के प्रधान
दयाल दास ने बताया कि यहां पाकिस्तान से आए 160 से अधिक परिवारों के 750 से अधिक लोग रहते हैं। वह कहते हैं कि कुछ समय पहले दिल्ली सरकार की तरफ से कुछ शौचालयों का निर्माण तो किया था, लेकिन वह अव्यवस्था का शिकार हो गए।
मौसम की मार झेल रहे शरणार्थी
पाकिस्तान के सिंध प्रांत से वर्ष 2013 में आए सोना दास का कहना है कि सरकार की तरफ से एक पानी की लाइन दी गई है लेकिन उस पानी से पूरी बस्ती की पूर्ति नहीं होती है। ऐसे में उन्हें गुरुद्वारे, अखाड़ा और कभी-कभी खरीदकर पानी लाना पड़ता है। वह कहते हैं कि सरकार अगर उन्हें पानी-बिजली की सुविधा दे तो अच्छा होगा।
- रेशमा तीन माह के बच्चे को गत्ते के टुकड़े से हवा करती नजर आती हैं। वह कहती हैं कि बिजली का मीटर तो लगा है, लेकिन उसे रिचार्ज करना पड़ता है। वह रोते हुए बताती हैं कि इतने रुपये नहीं हैं कि मीटर रिचार्ज कर सकें। ऐसे में वह बीते दो दिन से बगैर बिजली के दिन गुजार रही हैं। माया बताती हैं कि बरसात के मौसम में यहां जगह-जगह बारिश का पानी भर जाता है, लेकिन न तो सफाई होती है और न ही मच्छरों को मारने के लिए दवाई का छिड़काव किया जाता है। अफगानिस्तान, बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की बस्ती का हाल भी ऐसा ही है।
नागरिकता मिलने के बाद रोजगार के अवसर मिलेंगे
पहले नागरिकता न होने की वजह से शरणार्थी दिल्ली से बाहर नहीं जा सकते थे, पर अब नागरिकता मिलने के बाद विभिन्न राज्यों में रोजगार के लिए आ-जा सकते हैं। इससे रोजगार के अवसर मिलेंगे। यहां रहने वाली सोनम बताती हैं उन्हें कुछ दिन पहले ही नागरिकता मिली है। अब वह स्कूल में पढ़ाने के लिए आवेदन कर सकती हैं। वह कहती हैं कि इससे पुरुषों के साथ महिलाएं भी सशक्त होंगी। पाकिस्तान में महिलाओं को अक्सर बाहर नहीं भेजा जाता था लेकिन यहां महिलाएं, पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। एक गैर सरकारी संगठन से जुड़ीं नेहा बताती हैं कि अगर सरकारी की तरफ से इन्हें डिजिटल शिक्षा दी जाए।