कड़कड़डूमा कोर्ट ने साल 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के दौरान आगजनी और लूटपाट के मामले में छह आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपने आरोपों को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रवीन सिंह ने कहा कि अभियोजन की ओर से पेश साक्ष्यों में गंभीर विसंगतियां नजर आई।
अभियोजन पक्ष किसी भी आरोपी के खिलाफ लगाए गए किसी भी आरोप को साबित नहीं कर सका है। खजूरी खास थाना पुलिस ने मामले में राजेंद्र झा, तेजवीर चौधरी, राजेश झा, गोविंद सिंह मनराल, पीतांबर झा और देवेंद्र कुमार उर्फ मोनू पंडित के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया था। अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन के गवाहों की गवाही और पहचान में गंभीर विरोधाभास हैं। खासतौर पर हेड कांस्टेबल विपिन तोमर की गवाही को अदालत ने अविश्वसनीय बताया।
अदालत ने कहा कि तोमर की गवाही पर उस वक्त संदेह उत्पन्न हुआ, जब उसने अदालत में गवाही शुरू होने से पहले अपने मोबाइल फोन से आरोपियों की तस्वीरें खींचीं और फिर उन्हें तुरंत डिलीट कर दिया। बाद में वे तस्वीरें फोन की डिलीटेड फोल्डर में पाई गई। अदालत ने कहा कि कोई भी सार्वजनिक गवाह अभियोजन पक्ष के इस दावे का समर्थन नहीं करता कि आरोपी भीड़ का हिस्सा थे। जिन्होंने गुलजार, अल्ताफ, इरशाद, अल्का गुप्ता, विकास शर्मा और सतीश चंद शर्मा के घरों और दुकानों को लूटा और नुकसान पहुंचाया।