दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) की जीत कई मायनों में बेहद अहम है। चुनाव से पहले आम धारणा थी कि आप को केवल कामगार वर्ग तथा वंचित तबके का मत मिलता है और इसकी वजह मुफ्त बिजली, पानी, परिवहन जैसी सुविधाएं हैं। समृद्ध वर्ग के लोग भाजपा या कांग्रेस को वोट करते हैं।
अब आते हैं मुद्दों पर। इन चुनावों में आखिर मुद्दे क्या थे? आप, भाजपा और कांग्रेस तीनों ने ही विकास की बात की। अगर चुनावी वादों की बात करें तो सब दलों ने मिलते जुलते से ही किए। तो फिर मतदाताओं ने एकजुट होकर केवल आम आदमी पार्टी पर ही विश्वास क्यों किया।
ओखला विधानसभा सीट से आप के अमानतुल्लाह खान ने लगभग 70 हजार वोटों से बड़ी जीत दर्ज की है। उन्हें लगभग 66 फीसदी वोट मिले। इससे साफ है कि सभी वर्ग के लोगों ने आप की विकास की राजनीति पर भरोसा किया।
अमानतुल्लाह ने जीत के बाद कहा भी कि यहां जो विकास हुआ है वही जीत की सबसे बड़ी वजह है। शाहीन बाग इसी विधानसभा क्षेत्र में आता है जहां पिछले काफी समय से संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ धरना चल रहा है। अब आते हैं चांदनी चौक सीट पर। यहां कांग्रेस की हाई प्रोफाइल प्रत्याशी अलका लांबा मैदान में थीं।
अलका पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ थीं। चांदनी चौक में सभी तबके के लोग रहते हैं। यहां व्यापारी वर्ग है तो मजदूर और मध्यम वर्ग के लोग भी रहते हैं। यहां आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी प्रहलाद सिंह साहनी को करीब 66 फीसदी वोट मिले। अलका केवल पांच फीसदी तथा भाजपा के सुमन गुप्ता को 27 फीसदी वोट मिले। इसी तरह करोल बाग सीट से आप के प्रत्याशी विशेष रवि को 62 फीसदी मत मिले। उनके मुकाबले में भाजपा के योगेंद्र चंडोलिया को 32 फीसदी मत मिले।
यह कुछ उदाहरण है जिससे साफ है कि दरअसल लोग बंटे नहीं और सभी समुदायों ने आप को वोट किया। मतदाताओं ने केवल विकास के पैमाने पर ही वोट दिया। कांग्रेस तो चुनाव में ज्यादा प्रचार नहीं कर पाई। वहीं भाजपा नेताओं ने आखिर में जिस तरह की बयानबाजी की उसका कोई फायदा पार्टी प्रत्याशियों को नहीं मिल पाया।
जैसा कि जीतने पर आप नेता अरविंद केजरीवाल ने कहा भी, दिल्लीवालों ने एक नई तरह की राजनीति को जन्म दिया है, काम की राजनीति। जो पार्टी काम करेगी वही जीतेगी। यानी तीनों पार्टियों में मतदाताओं ने आजमाई हुई आप पर ही ज्यादा भरोसा किया। यहां आप सरकार का पांच साल का काम ही काम आया।
विधानसभा के चुनावों में वोट के गणित के लिहाज से सबसे ज्यादा सेंधमारी कांग्रेस के मत प्रतिशत में हुई। विशेषज्ञों का कहना है ऐसी संभावना है कि इस बार कांग्रेसी वोटरों ने अपनी धुर विरोधी पार्टी भाजपा को भी वोट दिया है। शायद यही वजह है कि भाजपा का वोट प्रतिशत पिछले सालों की तुलना में बढ़ा है।
इस चुनाव में अगर पड़े कुल वोट के प्रतिशत को हिसाब किताब करेंगे तो सब कुछ साफ हो जाएगा। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक इस बार 53 फीसदी से ज्यादा मत आम आदमी पार्टी को पड़े। जबकि भाजपा का इस बार मत प्रतिशत 38 फीसदी से ज्यादा रहा। वहीं कांग्रेस का वोट प्रतिशत इस बार चार फीसदी के करीब रहा।
पिछले सालों से तुलना करें तो देखेंगे कि आम आदमी पार्टी का वोट बैंक तो बहुत हद तक एक जैसा ही है लेकिन कांग्रेस का वोट बैंक जबरदस्त तरीके से नीचे गिरा है। 2015 के चुनावों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत दस फीसदी के करीब था। जो इस बार चार फीसदी से थोड़ा सा ज्यादा है। वहीं भाजपा का 2015 में वोट प्रतिशत 32 फीसदी से थोडा सा ज्यादा था जो इस बार बढ़कर 38 फीसदी से ज्यादा हो गया।
राजनीतिक विश्लेषक प्रो. सुनील सिंह कहते हैं कि आंकड़ों को और वोट बैंक को अगर बहुत बारीकी से देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस से खिसके हुए वोट का एक बहुत बड़ा हिस्सा या तो भाजपा में गया या फिर आप में गया हो। चूंकि आप में वोटों का प्रतिशत तकरीबन एक समान है ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि कांग्रेस के वोट प्रतिशत का एक हिस्सा भाजपा में गया होगा।