नालों से गाद निकालने के संबंध में ट्रिब्यूनल ने कहा कि गाद निकालने की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए शीघ्र कार्रवाई करने की आवश्यकता है। नाले से निकाली गई गाद कुछ स्थानों पर नाले के किनारे रखी रहती है, जो बारिश के कारण वापस नाले में बह जाती है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने संबंधित अधिकारियों को दिल्ली में बारापुला, कुशक और सुनेहरी पुल के साथ कई नालों से गाद निकालने का काम पूरा करने के लिए शीघ्र कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। एनजीटी ने कहा कि यह देखने में आया है कि नाले से निकाली गई गाद उसके किनारे रखी रहती है और बारिश होने पर वापस उसी में बह जाती है। एनजीटी नालों के माध्यम से यमुना नदी में अपशिष्टों के निर्वहन और सीवेज उपचार संयंत्रों (एसटीपी) की स्थापना और नालों की गाद निकालने और ड्रेजिंग सहित इससे संबंधित मुद्दों पर सुनवाई कर रहा था। उन्होंने दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) पर इस मामले पर देर से जवाब दाखिल करने के लिए 20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
13 अगस्त को ट्रिब्यूनल ने नालों से गाद निकालने पर सुनवाई करते हुए डीजेबी से दो सप्ताह के भीतर जवाब मांगा था। एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि डीजेबी ने अपनी रिपोर्ट देर से दाखिल की। इससे कार्यवाही बाधित हुई है। पीठ ने कहा कि डीजेबी के सक्षम प्राधिकारी के पास रिपोर्ट दाखिल करने में देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारी का पता लगाने और उससे लागत वसूलने का अधिकार होगा।
नालों से गाद निकालने के संबंध में ट्रिब्यूनल ने कहा कि गाद निकालने की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए शीघ्र कार्रवाई करने की आवश्यकता है। नाले से निकाली गई गाद कुछ स्थानों पर नाले के किनारे रखी रहती है, जो बारिश के कारण वापस नाले में बह जाती है। ऐसे में जिम्मेदार व संबंधित अधिकारियों को नालों से गाद निकालने और उसे उचित स्थान पर ले जाने के लिए एक साथ कदम उठाने के निर्देश दिए जाते हैं।
55 में से अब तक केवल 40 एसटीपी ही बन पाए
एनजीटी ने कहा कि एमसीडी को निर्देश दिया गया है कि अगर ड्रेन का द्वार खोला जाता है तो यह सुनिश्चित किया जाएगा कि वहां के निवासियों को दुर्गंध और गैसों से कोई समस्या पैदा न हो। ट्रिब्यूनल ने कहा कि 13 जनवरी, 2015 के उसके पिछले आदेश के अनुसार, डीजेबी को मौजूदा 23 एसटीपी के अलावा 32 नए एसटीपी बनाने का निर्देश था। डीजेबी ने एसटीपी की मौजूदा स्थिति को संलग्न करते हुए 1 अगस्त को हलफनामा दायर किया था, लेकिन इसमें केवल 40 एसटीपी का उल्लेख है। ट्रिब्यूनल ने कहा कि 15 एसटीपी के बारे में जानकारी गायब थी। एनजीटी ने कहा कि 55 एसटीपी में से अब तक केवल 40 एसटीपी ही बन पाए हैं।
एनजीटी ने अधिकारियों को लगाई फटकार
एनजीटी ने संबंधित अधिकारियों को राजधानी में सीवेज उत्पादन के बारे में गलत गणना करने के लिए फटकार लगाई है। उन्होंने डीजेबी के वकील की दलीलों पर गौर किया कि दिल्ली में स्थापित उपचार क्षमता 667 मिलियन गैलन प्रतिदिन (एमजीडी) है, जबकि दिल्ली में अनुमानित सीवेज उत्पादन 792 एमजीडी है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में 792 एमजीडी सीवेज उत्पादन का अनुमान ही गलत गणना पर आधारित है।
जनसंख्या या प्रति व्यक्ति सीवेज उत्पादन के आधार पर सीवेज उत्पादन की गणना करने की जगह एमसीडी ने जलापूर्ति का गलत आधार लिया। जबकि स्पष्ट रूप से एमसीडी, दिल्ली में जलापूर्ति का एकमात्र स्रोत नहीं है। एनजीटी ने कहा कि धीमी प्रगति और डीजेबी के प्रदर्शन को देखते हुए यह विश्वास करना कठिन है कि ये डीएसटीपी 31 दिसंबर तक स्थापित हो जाएंगे। मामले को आगे की कार्यवाही के लिए 7 नवंबर के लिए तय की गई है।