मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बयान के बाद राज्य की कमलनाथ सरकार के भविष्य को लेकर फिर अटकलें शुरू हो गई हैं। सत्ता में आने के साथ ही इस सरकार की उम्र को लेकर कयास लगते रहे हैं, लेकिन इस बार दिग्विजय सिंह ने यह दावा कर दिया है कि भाजपा 25-25 करोड़ रुपए में कांग्रेस विधायकों को खरीदने की कोशिश कर रही है। दिग्विजय का यह दावा कितना दमदार है कहा नहीं जा सकता, लेकिन कांग्रेस के अंदरखाने में उपजी गुटबाजी से भी सरकार पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। बजट सत्र के पहले ही इस राजनीतिक दांव-पेच ने ठहरे हुए पानी में कंकड़ फेंक दिया है। अचानक मध्य प्रदेश का पारा चढ़ गया है और राजनीतिक गलियारों में इसकी तपिश महसूस की जाने लगी है। राज्य की सत्ताधारी कांग्रेस व विपक्षी दल भाजपा में अंदरखाने बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया है।
लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की करारी शिकस्त के बाद से ही राज्य के भाजपा नेताओं की सक्रियता बढ़ी है। कर्नाटक में बाजी पलटने के बाद ही रणनीतिकारों की निगाह मध्यप्रदेश पर टिकीं, लेकिन महाराष्ट्र के झटके से भाजपा ने कदम समेट लिए थे। अब नये सिरे से मध्यप्रदेश में भाजपा अगर अपना परचम फहराने का मंसूबा बनाती है तो इसके लिए कांग्रेस के किले में सेंध लगानी पड़ेगी। कुल 230 सदस्यों वाले सदन में फिलहाल दो सीटें रिक्त हैं, जहां निकट भविष्य में चुनाव होने हैं। बाकी सपा के एक, बसपा के दो, चार निर्दलीय और कांग्रेस के 114 सदस्यों समेत कुल 121 सदस्य सत्ता पक्ष में हैं। मौजूदा सदन में भाजपा के 107 सदस्य हैं। बहुमत के लिए भाजपा को सिर्फ नौ सदस्यों की जरूरत है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया भले ही खुलकर न बोलते हो, लेकिन मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री न बन पाने के बाद से ही उनके समर्थकों की टीस लगातार बढ़ती जा रही है। जाहिर है कि भाजपा के रणनीतिकार इसका भी फायदा उठाने की जुगत लगा रहे हैं।
पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान के बारे में कहा तो यही जा रहा है कि वह जोड़-तोड़ की सरकार बनाने की बजाय जनता के जरिये अपनी वापसी का सपना देख रहे हैं पर राजनीतिक पंडित यह भी दलील देते हैं कि सफलता मिलने तक वह पत्ता नहीं खोलना चाहते हैं। मंत्री रह चुके नरोत्तम मिश्रा भी जोड़-तोड़ की राजनीति में कम सक्रिय नहीं हैं। उधर, दिग्विजय ने कांग्रेस के विधायकों के खरीदे जाने का दावा किया तो कांग्रेसी किले में भी चौकसी बढ़ गई है। कुछ महीनों में जिन कांग्रेसी विधायकों की भाजपा के संपर्क में जाने की चर्चा हुई उन पर निगाहें टिक गई हैं।
नए बन गए मंत्री और वरिष्ठ रह गए
सरकार के गठन के समय भी जिस तरह पांच-छह बार के विधायकों को सरकार में शामिल न कर नए चेहरों को तरजीह दी गई, उससे असंतोष को हवा मिली। कोई बेटे तो कोई चहेतों को मंत्री बनवाने में कामयाब हुआ। इसका खामियाजा वरिष्ठों को चुकाना पड़ा। 20 वर्ष पहले मंत्री और कई बार विधायक रहे सदस्यों के मंत्री बनने के ख्वाब दिल में ही रह गए। अब यह पीड़ा फूटने को आतुर है।