दलितों के मुखर होने से बढ़ी बीजेपी की चुनौती, ‘माया’ के सहारे डैमेज कंट्रोल में जुटी!

एससी-एसटी प्रोटेक्शन एक्ट में गिरफ्तारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जिस तरह से हिंदीभाषी राज्यों में दलितों का उग्र प्रदर्शन देखने को मिला उसके कई सियासी संदेश भी हैं. जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दलित संगठन मुखर होकर सड़कों पर उतरे, इससे एक बात तो साफ़ है कि निशाने पर केंद्र की मोदी सरकार ही है. लिहाजा 2019 से पहले बीजेपी की मुश्किलें बढ़ गई हैं और चुनौती भी ज्यादा है. दरअसल फैसला सुप्रीम कोर्ट का था. जिसे लेकर सोमवार को केंद्र सरकार ने रिव्यु पिटीशन भी दाखिल किया. बावजूद उसके दलितों का गुस्सा सड़कों पर फूटा.दलितों के मुखर होने से बढ़ी बीजेपी की चुनौती, 'माया' के सहारे डैमेज कंट्रोल में जुटी!
यह स्थिति बीजेपी के लिए अच्छी नहीं मानी जा रही है. कहा जा रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के सामने दलितों को साधने की चुनौती और बड़ी हो गई है. यही वजह है कि अब आरएसएस और बीजेपी आंबेडकर जयंती के सहारे दलित और मलिन बस्ती में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और वास्तविक स्थिति से अवगत कराने का फैसला किया है. यही नहीं बीजेपी ने डैमेज कण्ट्रोल के लिए मायावती के उस शासनादेश का सहारा लेना शुरू किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि एससी-एसटी एक्ट का दुरूपयोग विपक्षी दल सरकार के खिलाफ कर सकते हैं.

दरअसल, 20 मार्च को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दलित संगठनों ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार एस-एसटी एक्ट को कमजोर करने में जुटी है. लिहाजा 2 अप्रैल को कई दलित संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया. इस दलित आंदोलन को बसपा ने भी सक्रियता के साथ सहयोग दिया. इस दौरान मध्य प्रदेश, यूपी, राजस्थान, झारखंड और बिहार में जिस तरह से दलितों का उग्र प्रदर्शन हुआ, इससे बीजेपी और संघ के माथे पर पसीने की लकीरें साफ देखी जा सकती हैं. हिंदीभाषी प्रदेश में दलितों की नाराजगी     बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती के तौर पर देखी जा रही है.

इसके अलावा बहराइच से बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले और सहयोगी दल भासपा के ओमप्रकाश राजभर की नाराजगी भी पार्टी के लिए चुनौती है. जिस तरह से पार्टी और गठबंधन के भीतर विरोध के सुर मुखर हो रहे हैं, आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मुश्किल हो सकती है.

कभी मायावती के काफी चहेते अफसरों में से एक रहे हैं बृजलाल का आरोप है कि मायावती दलितों की मसीहा नही हैं, बल्कि दलितों के सम्मान और सुरक्षा के लिए बने एससी-एसटी एक्ट को उन्होंने अपने आदेश से कमज़ोर किया था. मौजूदा समय में बीजेपी प्रवक्ता बृजलाल अपने साथ मई 2007 के एक शासनादेश की कॉपी भी दिखाते हैं. तत्कालीन मुख्य सचिव शंभूनाथ की ओर से जारी इस शासनादेश का पालन करवाना प्रदेश के सभी पुलिस अधिकारियों की ज़िम्मेदारी थी. कानून व्यवस्था के लिए जारी इस शासनादेश में 18 वें नंबर पर जो लिखा है, वो दलितों के लिए मायावती सरकार के रुख़ को दिखाता है. शासनादेश के मुताबिक सरकार को बदनाम करने के लिए एससी-एसटी एक्ट का दुरुपयोग हो सकता है. दबंग लोग दलितों को मोहरा बनाकर एससी-एसटी एक्ट के फर्ज़ी मुकदमे दर्ज़ करा सकते हैं. इससे ही साफ होता है कि मायावती सरकार जानती थी कि इस एक्ट का दुरूपयोग होता है.

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