ट्रकों में ठूंसे गए थे मजदूर। हाथ-पांव छिल गए कइयों के। ट्रकों से उतरे कई लोग तो सही से चल नहीं पा रहे थे। जब पूछा गया तो कहने लगे कि पैर की उंगली टूट गई है। महाराष्ट्र से आ रहीं जरीना के दोनों पैर सूजे हुए थे। ट्रक में बैठकर वह आईं। उन्होंने बताया कि ट्रक में कई लोग चोटिल हुए हैं।
अर्जुन, कपिल, जतिन और कलुवा ने कहा कि महाराष्ट्र से यूपी तक आ गए मगर उनका दर्द किसी ने नहीं जाना। शनिवार को बॉर्डर वाले इलाकों पर जाकर जब हालात देखे तो तस्वीरें रोंगटे खड़े कर देने वाली थीं। झांसी में ट्रकों से उतारे जा रहे मजदूरों की सांसें उखड़ रही थीं। मानो उन्होंने घंटों बाद सही से सांस ली हो।
ट्रक, लोडर, कंटेनर के साथ छोटा हाथी भी मजदूरों को भरकर दौड़ते नजर आए। हर वाहन में क्षमता से कई गुना लोग भरे थे। जिस ट्रक में दस से पंद्रह लोग सही से खड़े हो सकते हैं वहां पचास से साठ मजदूर देखने को मिले। झांसी-ग्वालियर मार्ग पर पाल कालोनी के पास हम लोग पहुंचे तो यहां से कानपुर जा रहे ट्रक खड़े थे।
यह ट्रक महाराष्ट्र से तीन दिन पहले चले थे। ट्रक से उतरे वाराणसी के हरिओम, मोहन और मोनू ने बताया कि यह समझ लीजिए कि बस बच गए। सांस तक नहीं आ रही थी। लेकिन क्या करते कोई दूसरा वाहन था ही नहीं। लोगों के पैर एक दूसरे के ऊपर थे। राजू अपना छिला हुआ पैर दिखाता है।
वहीं यूपी और मध्यप्रदेश के सिकंदरा बॉर्डर पर भी महाराष्ट्र से ट्रकों में भरकर आए मजदूरों को उतारा गया। यूपी के विभिन्न जिलों को जाने वाले मजदूरों को यहां से बसों के जरिए भेजा गया।
बलिया के प्रदीप, मऊ के कपिल, गोरखपुर के सतीश ने बताया कि रास्ते में कोई ढाबा तक नहीं था। पानी भी नसीब नहीं हुआ। भूखे-प्यासे यहां तक पहुंचे हैं।
ट्रक में इन लोगों की भी कोहनी छिल गई थी। पैर तो सभी के सूज गए थे। कानपुर बाईपास पर बस का इंतजार कर रहे जमील अहमद ने बताया कि वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ महाराष्ट्र से आ रहा है। तीन दिन लग गए यहां तक पहुंचने में।
महाराष्ट्र से आए मजदूरों से जब पूछा गया कि कोराना संक्रमण फैल रहा है ऐसे में वह भीड़ के साथ आ रहे हैं उन्हें डर नहीं लग रहा।
इस पर चंदौली के विकास का कहना था कि अगर मरना ही है तो अपनों के बीच जाकर न मरें। यहां बेगानों के बीच में क्यों रहें। वैसे भी जब काम धंधा सब बंद हो गया है तो भूखे ही मर जाएंगे।
गोरखपुर के सुभाष का कहना था कि मजदूर रोज खाता है और रोज कमाता है। अब पैसा बचा ही नहीं तो परिवार को कैसे पालेंगे। लिहाजा अपने गांव जा रहे हैं। कम से कम वहां उधार-पानी करके जुगाड़ तो चला लेंगे।
इस समय सबसे ज्यादा वाहन महाराष्ट्र से आ रहे हैं। इनमें ट्रक सबसे ज्यादा हैं। पिछले चार दिनों में 5000 से ज्यादा वाहन आ गए होंगे।
झांसी से महाराष्ट्र की दूरी ही 1000 किलोमीटर के करीब होगी। अब एक चालक ही गाड़ी लेकर आ गया है। रास्ते में कहीं थोड़ी बहुत देर को ट्रक रोककर नींद ले लेते हैं वरना तो गाड़ी चलती ही रहती है।
नासिर निवामी इकराम भी अपना ट्रक लेकर आया है। वह भी महाराष्ट्र से अकेला ही आया है। मुश्किल से दो से तीन घंटे सो पा रहा है। ऐसे में वह भी ड्राइविंग के दौरान ऊंघता ही होगा।
अब ऐसे में सुरक्षित सफर की बात भला कैसे कर सकते हैं। नासिक का ही हरिवर्मा भी ट्रक लेकर आया है। रक्सा बार्डर पर उससे बात हुई तो कहने लगा कि वह तो इससे भी अधिक दूरी तक गाड़ी चला लेता है लेकिन थकान नहीं होती।
मगर यह भला कैसे संभव है। नींद तो जरूरी है ही। अगर चालक की नींद पूरी न हो तो बड़ा हादसा हो सकता है। कार लेकर भी लोग महाराष्ट्र से आए हैं। छोटा हाथी लगातार चल रहा है।
औरेया हादसे से बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफ निर्देश दिए हैं कि कहीं भी मजदूरों को असुरक्षित तरीके से नहीं लाया जाएगा।
लेकिन झांसी में कई जगह ट्रक, छोटा हाथी, कंटेनर और लोडर तक से मजदूरों को ढोया जा रहा था। न इन वाहनों को कहीं रोका गया और न ही किसी चालक को टोका गया।
स्थिति यह है कि इन वाहनों के चालक कई दिनों से गाड़ी चला रहे हैं। नहीं भी पूरी नहीं हो पा रही है। ऐसे में कभी भी हादसा हो सकता है। लेकिन मजदूरों की सुरक्षा को लेकर कोई गंभीर ही नहीं है।