क्या आपको पता है की गणेश भगवान् को तुलसी कभी नहीं चढ़ाई जाती, आपने शिव-पार्वती, विष्णु-लक्ष्मी, राम-सीता, राधा-कृष्ण की कई प्रेम कथाएं सुनी होगी. लेकिन आपने कभी गणेशजी और तुलसी की प्रेम कहानी नहीं सुनी होग. ये हम आपको बताते है एक दिन भगवान गणेश गंगा नदी किनारे विष्णु के ध्यान में लीन थे गले में सुन्दर माला, शरीर पर चन्दन लिपटा हुआ था.
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उनके मुख से करोडो सूर्य का तेज चमक रहा था वे बहुत आकर्षण पैदा कर रहे थे, वही पर तुलसी नदी किनारे घूम रही थी और वे घुमते घुमते गणेशजी के पास गई, तभी तुलसी ने गणेशजी के मुख से वह तेज निकलते देखा और वे गणेशजी पर मोहित गई और तुलसी ने उसी समय गणेश जी को विवाह का प्रस्ताव रख दिया.
गणेश जी ने बड़ी शालीनता से उनके प्रेम प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया. उन्होंने कहा कि वे उस कन्या से विवाह करेंगे, जिसके गुण उनकी मां पार्वती जैसे हों. यह सुनते ही तुलसी को क्रोध आ गया. उन्होंने इसे अपना अपमान समझा और गणेश जी को श्राप दिया कि उनका विवाह उनकी इच्छा के विपरीत होगा. उन्हें कभी मां पार्वती के समतुल्य जीवनसंगिनी नहीं मिलेगी.
यह सुनते ही गणेशजी को भी क्रोध आ गया और उन्होंने तुलसी को श्राप दे दिया की उनका विवाह एक असुर से होगा. श्राप लगते ही तुलसी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान् गणेश से क्षमा मांगी तब गणेश जी ने उन्हें माफ़ किया और कहा की वे अगले जनम में एक पौधा बनेंगी. और वह पौधा तुलसी नाम से जाना जाएगा.
उस पौधे की सभी लोग पूजा करेंगे आप हर धर्म कार्य में रहेंगी आप देवी देवताओं के चरणों में समर्पित होंगी लेकिन मेरी पूजा में कभी तुलसी का प्रयोग नहीं होगा. इसके बाद तुलसी का विवाह शंखचुड नामक राक्षस से हो गया, जिसे जालंधर के नाम से भी जाना जाता है. तभी से भगवान् गणेश की पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाता.
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