राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख लालू प्रसाद ने तकरीबन चार साल पहले अपने परिवार के अन्य सदस्यों की दावेदारी को दरकिनार करते हुए बड़ी हसरत से अपने छोटे पुत्र तेजस्वी यादव को राजनीतिक उत्तराधिकार सौंपा था। उम्मीद थी कि लालू के सपने को आगे बढ़ाएंगे। शुरुआती दो-तीन सालों में तेजस्वी ने ऐसा किया भी, किंतु लोकसभा चुनाव में हार के बाद तेजस्वी ने लालू की अनुपस्थिति में नाव का पतवार छोड़ दिया।
अभी लालू की 22 साल पुरानी पार्टी एवं परिवार दोनों मंझधार में हैं और तेजस्वी करीब ढाई महीने से नेपथ्य में हैं। कार्यकर्ता हैरान हैं और नेता परेशान कि तेजस्वी पर्दे से बाहर कब तक आएंगे? शुक्रवार की बात करें ते आरजेडी के सदस्यता अभियान के उद्घाटन के मौके पर तेजस्वी फिर नहीं पहुंचे। कार्यक्रम में लालू परिवार के किसी अन्य सदस्य भी नहीं आना कई सवाल छोड़ गया।
आरजेडी के सदस्यता अभियान से रहे गैरहाजिर
करीब दो साल बाद शुक्रवार को शुरू हुए आरजेडी के सदस्यता अभियान के उद्घाटन के मौके पर सबको तेजस्वी का इंतजार था। तीन दिनों पहले तेजस्वी ने आने का वादा किया था। उनसे सहमति लेने के बाद ही पार्टी की ओर से मीडिया को बताया गया था कि पटना में तेजस्वी ही अभियान की शुरुआत करेंगे। इसीलिए कार्यक्रम के दौरान भी उनका बेसब्री से इंतजार होता रहा।
लेकिन जब दिल्ली से आने वाली दोपहर की फ्लाइट से भी तेजस्वी नहीं आए तो मायूसी पसर गई। नेता कन्नी काटने लगे। मीडिया के सवालों पर बहाने बनाने लगे। शिवानंद तिवारी ने कहा कि उनसे तो तेजस्वी ने 16 अगस्त के बाद आने के लिए कहा था। आज क्यों इंतजार हो रहा है?
बहरहाल, आरजेडी के मंच से सबने सबको धैर्य बंधाया। पार्टी को अटूट-एकजुट बताया और कार्यकर्ताओं के जोश को बरकरार रखने की कोशिश की। कामयाबी कितनी मिली, यह तो नए बनने वाले सदस्यों की संख्या और पार्टी के कोष में वृद्धि से ही पता चल सकेगा।
पूरे परिवार ने बनाई कार्यक्रम से दूरी
लालू परिवार के अभी चार सदस्य किसी न किसी सदन के सदस्य हैं। खुद राबड़ी देवी (Rabri Devi) विधान पार्षद हैं। डॉ. मीसा भारती (Misa Bharti) राज्यसभा सदस्य हैं और तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) विधायक हैं। सवाल उठता है कि तेजस्वी यादव अगर नहीं आए तो कार्यक्रम की औपचारिकता पूरी करने की जिम्मेवारी दूसरे ने क्यों नहीं उठाई? आखिर क्या मजबूरी थी कि चार में से एक ने भी आने की जरूरत नहीं समझी? लालू और तेजस्वी की अनुपस्थिति में परिवार का कोई भी सदस्य आ जाता तो कार्यकर्ताओं में सकारात्मक संदेश जाता।
तेजस्वी के खफा होने और पटना नहीं आने के बारे में भी आरजेडी के किसी नेता के पास जवाब नहीं है। राबड़ी देवी के पास भी नहीं। मीडिया के सवालों का उन्होंने भी कभी सीधा जवाब नहीं दिया। तेजस्वी के साथ साये की तरह रहने वाले मणि यादव और संजय यादव का जवाब भी टालमटोल वाला होता है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और प्रधान महासचिव भी अबतक कई तारीख बता चुके हैं।
राजद को दिशा दिखाने वाला कोई नहीं
पौने तीन महीने से राबड़ी देवी को छोड़कर आरजेडी का नेतृत्व करने वाला कोई नहीं है। लोकसभा के आखिरी दौर के प्रचार खत्म होने के दिन 17 मई से ही तेजस्वी अदृश्य हैं। ऐसे गायब हुए कि अपना वोट डालने भी नहीं आए। 11 दिन बाद 28 मई को आकर हार की समीक्षा की। एक टीम बनाई। रिपोर्ट मांगी। किंतु उसे देखने की जरूरत नहीं समझी।
इस दौरान विधानसभा का मानसून सत्र शुरू हो गया। उनके लापता होने के बैनर-पोस्टर भी लगने लगे। अचानक 33 दिन बाद पटना लौटे और मीडिया को बताया कि घुटने में दर्द का दिल्ली में इलाज करा रहे थे। दो दिन सदन में गए। कुछ बोले नहीं।
बड़ा सवाल: आखिर मामला क्या है?
पटना में रहते हुए तेजस्वी ने पार्टी के स्थापना दिवस समारोह में हिस्सा लेना जरूरी नहीं समझा। इसके अगले दिन राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में शामिल तो हुए, लेकिन फिर दिल्ली कूच कर गए। इसके बाद से अभी तक लौटकर नहीं आए हैं। सवाल लाजिमी है कि आखिर इतने क्यों खफा हैं तेजस्वी कि पार्टी और परिवार की जरूरतों को भी समझना नहीं चाह रहे हैं? आखिर मामला क्या है?