तपस्या भंग हुई तो भगवान शिव ने अंगूठे से रोक दिया था पर्वत, उसके बाद जो हुआ…

भगवान शिव के भक्‍तों के लिए महाशिवरात्रि का पर्व बड़ा ही खास और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन देशभर के शिव मंदिरों में भक्‍तों की खासी भीड लगी रहती है। इस खास मौके पर हम आपको बता रहे हैं भगवान के शिव के एक अनोखे मंदिर के बारे में जहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। भगवान शिव का यह खास मंदिर अचलगढ़ की पहाड़ियों में बना है, जो कि माउंट आबू से करीब 11 किलोमीटर दूर उत्तर में स्थित है।

बता दें कि, अचलेश्वर मंदिर में भगवान शिव के दाहिने पैर के अंगूठे की पूजा होती है। अचलगढ़ की पहाड़ियों पर किले के पास मौजूद अचलेश्वर मंदिर चमत्कारों से भरा है। लोगों की मान्यता है कि यहां के पर्वत भगवान शिव के अंगूठे के कारण ही टिके हैं, अगर उनका अंगूठा न होता तो ये पर्वत नष्ट हो जाते। भगवान शिव के अंगूठे के नीचे ही एक गड्ढा है। ये गड्ढा प्राकृतिक रूप से निर्मित है। मान्यता है कि इसमें चाहे कितना भी पानी भरा जाए वह नहीं भरता। इसका पानी कहां जाता है किसी को पता नहीं।

अचलेश्वर महादेव मंदिर परिसर में चंपा का बहुत बड़ा पेड़ भी है। इस पेड़ को देखकर इस मंदिर की प्राचीनता का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है। मंदिर में दो कलात्मक खंभों पर धर्मकांटा बना है जिसकी शिल्पकला भी बेहद खूबसूरत और अद्भुद है। मंदिर परिसर में द्वारिकाधीश मंदिर भी बना हुआ है। मंदिर के गर्भगृह के बाहर वराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम,बुद्ध व कलंगी अवतारों की प्रतिमाएं बनीं हुई हैं। ये सभी प्रतिमाएं काले पत्थर पर बनी हुई हैं।
प्रचलित कथाओं के अनुसार एक बार अर्बुद पर्वत पर स्थित नंदीवर्धन हिलने लगा था। इससे हिमालय पर तपस्या कर रहे भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई। इस पर्वत पर भगवान शिव की नंदी भी मौजूद थे। नंदी को बचाने के लिए भगवान शिव ने हिमालय से ही अपने अंगूठे को अर्बुद पर्वत तक पहुंचा दिया और पर्वत को हिलने से रोक दिया। उसी वक्त से लोग भगवान शिव के अंगूठे की पूजा करने लगे, जो आज तक जारी है।

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