पंजाब सरकार जल्द ही ट्री प्रोटेक्शन एक्ट-2025 लेकर आएगी। सरकार की तरफ से नए बिल का ड्राफ्ट तैयार किया जा चुका है। इस मसौदे पर मंजूरी से पहले इसमें कुछ महत्वपूर्ण बदलाव के लिए दबाव की कवायद शुरू हो गई है।
पर्यावरणीय संकट से बचाने व सूबे में वन और पेड़ों से ढके क्षेत्र का दायरा बढ़ाने के इरादे से पंजाब सरकार जल्द ही ट्री प्रोटेक्शन एक्ट-2025 लेकर आएगी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यून (एनजीटी) के निर्देशों के बाद राज्य सरकार ने इसका मसौदा तैयार कर लिया है। इसे आगामी विधानसभा सत्र में लाने की तैयारी है मगर इस मसौदे पर मंजूरी से पहले इसमें कुछ महत्वपूर्ण बदलाव के लिए दबाव की कवायद शुरू हो गई है।
दरअसल, पंजाब के विभिन्न जिलों से जुड़े छह मामले ऐसे हैं जो सरकार के खिलाफ एनजीटी में पेंडिंग हैं। इन सभी मामलों को बंच करते हुए एनजीटी अब एक साथ सुनवाई कर रही है। इसी कड़ी में पंजाब सरकार ने ट्री प्रोटेक्शन एक्ट (वृक्ष संरक्षण अधिनियम) का मसौदा तैयार किया है। इसी मसौदे में कुछ जरूरी बदलावों के लिए वटरुख फाउंडेशन के बैनर तले पंजाब के 27 विभिन्न संगठनों से जुड़े पर्यावरणविद लामबंद हो गए हैं।
फाउंडेशन की संस्थापक निदेशक समीता कौर ने बताया कि इस प्रस्तावित एक्ट में जो कमियां हैं उस बाबत फाउंडेशन की ओर से प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है जिसे सरकार को सौंपा जाएगा। इसके लिए मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव से भी मुलाकात की जाएगी। उनके अनुसार भारत के लगभग 12 राज्यों में ट्री प्रोटेक्शन एक्ट बना हुआ है। एनजीटी के दबाव में आकर पंजाब सरकार ने 2024 में ट्री प्रोटेक्शन पॉलिसी बनाई थी मगर इसमें भी काफी कमियां थीं। अब सरकार नया एक्ट ला रही है।
पर्यावरणविद कर्नल जसजीत सिंह गिल, डॉ. मंजीत सिंह, कपिल अरोड़ा व तेजस्वी मिन्हास ने बताया कि सरकार द्वारा तैयार किए गए विधेयक में कुछ प्रमुख तत्व छूट गए हैं। उनके बिना यह एक्ट प्रभावशाली नहीं बन सकता।
सरकार को दिए जाने वाले प्रस्ताव के कुछ बिंदु
पंजाब में कोई अपीलीय निकाय नहीं है, जहां शिकायतों का निवारण हो। पेड़ों की कटाई, छंटाई आदि से संबंधित शिकायत या अनुमति लेने के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं है।
प्रस्तावित एक्ट शहर केंद्रित है। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों को शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि पंजाब का 90 फीसदी से ज्यादा भौगोलिक क्षेत्र ग्रामीण है।
कृषि वानिकी और कार्बन क्रेडिट को बढ़ावा देने के संदर्भ में कोई जिक्र नहीं किया गया।
विरासत वृक्षों का एक्ट में कोई उल्लेख नहीं है जबकि इनके संभाल की बहुत जरूरत है।
प्रस्तावित विधेयक में कारावास का प्रावधान ही गायब है। जुर्माने भी सिर्फ 5 हजार से 50 हजार है।
वृक्ष गणना और जियोटैगिंग के साथ-साथ पेड़ों के रखरखाव की जांच करने और जवाबदेही सुनिश्चित करने का भी जिक्र नहीं है।
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