टैंकर विस्फोट ओमान: यूएई भी मैदान में कूदा, ईरान और अमेरिका…

अमेरिका का आरोप है कि ओमान की खाड़ी के निकट होमरुज स्ट्रेट में तेल टैंकरों पर हुए इस हमले को ईरान ने अंजाम दिया है। ईरान का कहना है कि ओमान की खाड़ी की सुरक्षा की जिम्मेदारी उसकी है और उसने ऐसा कोई काम नहीं किया है। ईरान ये यह भी कहा कि हमले के बारे में दिए जा रहे सबूत मनगढ़ंत हैं। ईरान ने अपनी सफाई में यह भी कहा है कि तेल टैंकरों के चालक दलों को बचाने में उसके सुरक्षा अधिकारियों ने तत्परता दिखाई थी। संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन जायद अल नहयान ने भी अमेरिका के सुर में सुर मिलाया है। उनका कहना है कि तेल टैंकरों पर हुए हमले में ईरान का हाथ स्पष्ट है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यहां से गुजरने वाले जहाजों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाना चाहिए।

ईरान ट्रंप के निशाने पर-   ईरान को लेकर डोनाल्ड ट्रंप हमलावर रहे हैं। ऐसे में वह ईरान को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते हैं। इजरायल और अरब देशों की तरह ट्रंप भी मानते हैं कि ईरान क्षेत्र की शांति भंग कर रहा है। 2015 में उन्होंने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से भी अमेरिका को अलग कर लिया था। इस समझौते में अमेरिका ने परमाणु कार्यक्रमों पर नियंत्रण के बदले ईरान की आर्थिक मदद का भरोसा दिया था। ट्रंप ने ईरान पर फिर प्रतिबंध लगा दिए हैं। इन प्रतिबंधों का लक्ष्य है कि ईरान का तेल निर्यात बाधित हो जाए। ईरान की सेना को वह आतंकी संगठन का दर्जा भी दे चुके हैं।

होमरुज स्ट्रेट क्यों अहम है-  इस घटना ने क्यों पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है, इसे जानने के लिए होमरुज स्ट्रेट की महत्ता को समझना होगा। दुनियाभर में करीब एक तिहाई कच्चे तेल की आवाजाही इसी स्ट्रेट से होती है। इसके अलावा प्राकृतिक गैस का करीब पांचवां हिस्सा भी यहीं से होकर जाता है। ऐसे में इस स्ट्रेट को निशाना बनाकर पूरी दुनिया में कच्चे तेल की आपूर्ति को प्रभावित किया जा सकता है।

परेशान अमेरिका क्यों है-  जिन दो टैंकरों पर हमले की बात कही जा रही है, उनका दूर-दूर तक अमेरिका से संबंध नहीं है। फिर भी इस मामले में अमेरिका के हस्तक्षेप की बड़ी वजह है। दूसरे विश्व युद्ध के समय से ही अमेरिका ने फारस की खाड़ी से पेट्रोलियम की सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करने का भरोसा दिया है। 1990-91 में खाड़ी युद्ध के दौरान इस क्षेत्र में सैन्य उपस्थिति के जरिये अमेरिका ने फिर अपनी प्रतिबद्धता जता दी थी। भले ही अमेरिका के टैंकर शामिल नहीं हों, लेकिन इस रास्ते के बंद होने से अमेरिकी हितों पर भी प्रभाव पड़ेगा।

 

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