हाथरस कांड में जेल से जारी चिट्ठी ने कई अहम सवाल खड़े कर दिए हैं, जिनके जवाब खोजना शायद जांच एजेंसियों का हिस्सा बने। मगर, एक अहम सवाल यहां खड़ा हो रहा है कि चिट्ठी का ज्ञान आरोपियों के खुद के दिमाग की उपज है, या किसी अज्ञात ‘मुलाकाती’ ने कानूनी राय लेकर उन्हें यह ज्ञान दिया। यह सवाल इसलिए भी खड़ा हो रहा है कि चिट्ठी का मजमून कानूनी ज्ञान से ओतप्रोत है और चिट्ठी जेल से जारी होने के चंद घंटों बाद ही लीक हो गई और मीडिया/सोशल मीडिया तक पहुंच गई। फिर यह कैसी गोपनीयता है?
वैसे तो कोरोना काल में जेल में बंदियों/कैदियों की मुलाकात बंद है। इसके बावजूद पिछले दिनों हाथरस के भाजपा सांसद, बरौली के भाजपा विधायक और हाथरस के ही हसायन के ब्लाक प्रमुख पति जेल गए थे। हालांकि, जेल से वापसी के बाद खुद उन्होंने हाथरस कांड के आरोपियों से मुलाकात न करना स्वीकारा था।
कारागार अधिकारियों ने भी बताया कि सांसद तो किसी से नहीं मिले। विधायक व उनके साथ आए अन्य लोग किसी गंगा सिंह नाम के बंदी से मिले थे। इस तरह इन चारों की किसी से मुलाकात नहीं हुई। मगर, इस बात को बाहर के लोग मानने तो तैयार नहीं। तरह-तरह की बातें कही जा रही हैं, इन मुलाकातों को लेकर। सांसद पर तो कई तरह के आरोप भी लगे हैं।
अज्ञात ‘मुलाकातों’ के बाद अचानक चिट्ठी का मामला सामने आ गया। इसे लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं। कोई कह रहा है कि यह चिट्ठी बाहर लिखी गई है और फिर अंदर आरोपियों तक पहुंचाई गई है। कोई कह रहा है कि आरोपियों को चिट्ठी का कच्चा मजमून दिया गया है। उसे इन लोगों ने अपनी राइटिंग में लिखकर बाहर भिजवा रहा है। कोई कह रहा है कि इन्हें ‘मुलाकातों’ में ज्ञान दिया गया है। तभी तो इस चिट्ठी में अपराध संख्या से लेकर धारा आदि लिखे गए हैं।
चिट्ठी के लीक होने को लेकर भी तरह-तरह की बातें सामने आ रही हैं। हालांकि कारागार प्रशासन का कहना है कि चिट्ठी उन्हें बंदियों द्वारा मुहैया कराई गई, जिसे तत्काल लिफाफा बंद कर विशेष संदेश वाहक के जरिये हाथरस भेजा गया। हालांकि एसपी हाथरस ने बृहस्पतिवार देर शाम तक यही कहा कि उन्हें चिट्ठी नहीं मिली। अब जो भी हो, मगर चिट्ठी या तो जेल से ही लीक हुई या फिर हाथरस एसपी आवास से लीक हुई।
हाथरस कांड को लेकर रेंज स्तर पर विशेष रूप से तैनात किए गए एडीजी राजीव कृष्ण इस प्रकरण में लगातार दस्तावेज लीक होने को गंभीर विषय मानते हैं। जब उनसे सवाल हुआ कि पहले बेहद गोपनीय पोस्टमार्टम रिपोर्ट लीक होकर मीडिया व सोशल मीडिया तक पहुंची। फिर फॉरेंसिक परीक्षण रिपोर्ट और इसके बाद आरोपी के मोबाइल की सीडीआर और अब जेल से जारी चिट्ठी लीक हुई। चूंकि, प्रकरण बेहद गंभीर है और लगातार इसकी वजह से जातीय तनाव बढ़ रहा है तो यह कैसे लीक हो जा रहे हैं। इस पर उन्होंने माना कि दस्तावेज लीक होना गंभीर विषय है, इसकी जांच होगी। जिस स्तर पर भी यह फॉल्ट हुए हैं, उस स्तर पर कार्रवाई की जाएगी।
दीवानी न्यायालय के अधिवक्ता दीपक बंसल स्वीकारते हैं कि बंदी को किसी भी स्तर पर अगर संदेश बाहर भेजने के लिए चिट्ठी लिखनी है तो कारागार नियमों के अनुसार वह कारागार अधिकारियों के जरिये चिट्ठी लिखकर भिजवा सकता है। मगर उसकी गोपनीयता रहनी चाहिए। इस मामले में चिट्ठी लीक होना गलत है।