अमेरिका और ब्रिटेन समेत कुछ देशों में मंजूर और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा स्वीकृत विदेशी वैक्सीन के देश में इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति देने के बावजूद टीके की सप्लाई में तत्काल बढ़ोतरी की कोई उम्मीद नहीं है। मई में आयातित स्पुतनिक-वी की सप्लाई शुरू होने की उम्मीद है, लेकिन उसकी मात्रा भी सीमित होगी। इसके अलावा भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट का उत्पादन भी जून से ही बढ़ने की उम्मीद है।
वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने के लिए चल रही वार्ता, विदेशी वैक्सीन के लिए भी खुले दरवाजे
दरअसल, देश में सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक फिलहाल हर महीने कोरोना वैक्सीन की लगभग सात करोड़ डोज यानी प्रतिदिन लगभग 23 लाख डोज तैयार कर रही हैं। जबकि, प्रतिदिन औसतन 35 लाख टीके लगाए जा रहे हैं, इसकी तुलना में उत्पादन बहुत कम है। इस कमी को दूर करने के लिए सरकार कई स्तरों पर काम कर रही है। एक तरफ भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट से उत्पादन बढ़ाने के लिए बातचीत चल रही है, तो दूसरी ओर विदेशी वैक्सीन के लिए भारत के दरवाजे खोल दिए गए हैं।
मई तक वैक्सीन की सप्लाई रहेगी सीमित: स्वास्थ्य मंत्रालय
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया कि तमाम कोशिशों के बावजूद मई तक वैक्सीन की सप्लाई सीमित रह सकती है। स्पुतनिक-वी के भारत में उत्पादन के लिए रसियन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट फंड ने तीन भारतीय कंपनियों के साथ सालाना 85 करोड़ डोज के उत्पादन का समझौता किया है।
जून तक स्पुतनिक-वी का उत्पादन हो जाएगा शुरू, सीरम और भारत बायोटेक बढ़ाएगी उत्पादन क्षमता
सबकुछ ठीक रहा तो भारतीय कंपनियों में जून तक स्पुतनिक-वी का उत्पादन शुरू हो जाएगा। इसी तरह भारत बायोटेक ने भी जून में अपनी उत्पादन क्षमता हर महीने 70 लाख डोज से बढ़ाकर एक करोड़ 40 लाख करने का भरोसा दिलाया है। वहीं सीरम इंस्टीट्यूट ने अगस्त तक हर महीने 11 करोड़ डोज की उत्पादन क्षमता हासिल कर लेने का दावा किया है।
विदेशी वैक्सीन की सप्लाई को लेकर स्पष्टता नहीं
फाइजर, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन जैसी विदेशी कंपनियों के वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत देने को गेमचेंजर कहा जा रहा है, लेकिन इन सभी वैक्सीन की सप्लाई को लेकर अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है। इनमें से केवल फाइजर ने भारत में वैक्सीन सप्लाई करने की इच्छा जताई थी और इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत देने के लिए आवेदन भी किया था, लेकिन भारत में सीमित ट्रायल की शर्त को देखते हुए उसने फरवरी में अपना आवेदन वापस ले लिया था। दूसरी सबसे बड़ी समस्या इन वैक्सीन का सीमित मात्रा में उत्पादन और पहले से विभिन्न देशों के साथ सप्लाई के लिए हुए समझौते भी हैं। अभी तक यह साफ नहीं है कि पूर्व समझौते को पूरा करने का बाद इन कंपनियों के पास कितनी मात्रा में वैक्सीन उपलब्ध है और भारत में उसकी सप्लाई और कीमत की व्यवस्था क्या होगी। स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि विदेशी कंपनियां भारत में अपनी वैक्सीन बनाकर सप्लाई करना पसंद करेंगी। इससे लागत भी कम आएगी और उत्पादन भी तेज होगा।