समलैंगिकता अपराध है या नहीं, इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में बहस तीसरे दिन भी चल रही है। बुधवार को केंद्र सरकार ने धारा-377 को लेकर सुप्रीम कोर्ट पर फैसला छोड़ दिया है। केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा कि समलैंगिकता अपराध है या नहीं, इसका फैसला वो अपने विवेक से करे। एक याचिकाकर्ता के वकील अशोक देसाई ने सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली संविधान पीठ के सामने कहा कि LGBTQ भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है और कई देश इसे अपना भी चुके हैं। बहस के दौरान जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने कहा कि प्रकृति और विकृति का सहअस्तित्व है। उन्होंने कहा कि कई प्रकार के जीवों में सेम सेक्स इंटरकोर्स देखने को मिलता है।
जीवों में भी देखने को मिलती है समलैंगिकता: सुप्रीम कोर्ट
इस मामले में वकील श्याम दीवान ने कहा है कि अब समय आ गया है कि कोर्ट अनुच्छेद 21 के तहत राइट टूट इंटिमेसी को जीवन जीने का अधिकार घोषित कर देगा। एडिश्नल सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार की तरफ से जारी ऐफिडेविट में समलैंगिकता पर फैसला सुप्रीम कोर्ट के ऊपर छोड़ दिया है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली संवैधानिक बेंच ने कहा कि वह इस बात का परीक्षण कर रहे हैं कि धारा-377 वैध है या नहीं। चीफ जस्टिस के साथ, जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही है।