जीवन में सफल होने के लिए किताबी ज्ञान से आगे सोचें छात्र: पूर्व सांसद डॉ. गोपाल

सासाराम: पूर्व सांसद और डॉ. गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय के कुलाधिपति गोपाल नारायण सिंह ने मंगलवार को कहा कि छात्रों को अपने पाठ्य पुस्तक में उपलब्ध ज्ञान और जानकारी से आगे भी सोचने की आदत डालनी चाहिए।

“पाठ्य पुस्तक से उपलब्ध ज्ञान पूर्ण शिक्षा का मात्र 25 प्रतिशत ही…”
डॉ. सिंह ने मंगलवार को यहां गोपाल नारायण विश्वविद्यालय के द्वितीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि छात्रों को अपने पाठ्य पुस्तक में उपलब्ध ज्ञान और जानकारी से आगे भी सोचने की आदत डालनी चाहिए। पाठ्य पुस्तक से उपलब्ध ज्ञान पूर्ण शिक्षा का मात्र 25 प्रतिशत ही है, जिसका ध्यान रखा जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने शिक्षकों से आह्वाहन किया कि वे छात्र-छात्राओं में रचनात्मक सोच विकसित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं। कुलाधिपति ने कहा कि पूर्ण शिक्षा का उद्देश्य प्राप्त करके ही जीवन में सफल हुआ जा सकता है। उपस्थित शिक्षकों से विदेशों से आये विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों का छात्र- छात्राओं से संवाद का अच्छा असर निश्चित रूप से हुआ होगा, जिसका लाभ उठाने की आवश्यकता है। तात्कालिक रूप से भले ही इस संवाद का परिणाम सामने नजर नहीं आ रहा हो, लेकिन छात्र- छात्राओं पर भविष्य में इसका सकारात्मक प्रभाव निश्चित रूप से होगा।        

“बिहार में शिक्षा की स्थिति को सुधारने के लिए राज्यपाल कर रहे प्रयास”
डॉ. सिंह ने कहा कि बिहार में शिक्षा की स्थिति को सुधारने के लिए राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर लगातार प्रयास कर रहे हैं। राज्यपाल से उन्होंने अनुरोध किया है कि वे बिहार में शिक्षा-व्यवस्था में सुधार लाने के प्रयास में उन्हें हर संभव सहयोग देने को तैयार हैं। राज्यपाल से उन्होंने आग्रह किया है कि वह बिहार के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की बैठक गोपाल नारायण सिंह विवि के परिसर में कराएं। दो दिनों के बैठक के दौरान वे हर सुविधा उपलब्ध कराने को तैयार हैं और उन्हें उम्मीद है कि इस बैठक से शिक्षा- व्यवस्था में सुधार का कोई ठोस रास्ता निकल सकेगा। कुलाधिपति ने कहा कि उन्हें ख़ुशी है कि विश्व के कई देशों से विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए यहां आये। पूर्वी एशिया के देशों के विशेषज्ञों को अगली बार आयोजित किए जाने वाले सेमिनार में ज्यादा से ज्यादा संख्या में आमंत्रित किया जाना चाहिए। पूर्वी एशिया के कई देश प्राचीन समय में कभी न कभी भारत के ही हिस्सा रहे हैं।

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