जिसके लौटने की कहीं से कोई उम्मीद नहीं थी, इसलिए बेटों ने जिस मां का दाह संस्कार कर दिया था, उनका चेहरा भी ठीक से याद नहीं था कि 30 साल के बाद वह अचानक मिल गई तो बेटों की आंखों से अश्रुधार बह निकले। बेटों के मुंह से बस इतना निकल रहा था कि विश्वास नहीं होता, इतने वर्षों बाद मां मिल जाएंगी।
ये भगवान का आशीर्वाद ही है कि मां मिल गईं। यह कहते हुए दिनेश यादव भावुक हो जाते हैं। वे कोलकाता में मिली रुक्मिणी देवी के मंझले पुत्र हैं। गांव के लोग भी खुश हैं। दिनेश बताते हैं कि मां को कोलकाता से लाने के लिए बोलेरो वाले ने 25 हजार रुपये लिए। कर्ज लेकर भाड़ा चुकाया। बहरहाल, रुक्मिणी परिवार में आकर खुश हैं। वे मानसिक रूप से कमजोर हैं। इसलिए बीती बातें उन्हें पूरी तरह याद नहीं हैं।
कोलकाता के बालू घाट में उनका मायका है। वे वहीं का नाम लेकर कह रही हैं कि मायके से ससुराल आए हैं। सदर प्रखंड के बाजितपुर नैनी गांव से गुम हुईं रुक्मिणी देवी 30 वर्ष बाद पश्चिम बंगाल के सागरदीप में मिली हैं। रुक्मिणी देवी को उनके बेटों से मिलाने में हैम रेडियो के पश्चिम बंगाल रेडियो क्लब के सदस्यों की भूमिका अहम रही है।
दिनेश ने बताया कि मिथिलेश और दीपक उनके भाई हैं। पिता रामनाथ यादव कोलकाता की एक कंपनी में काम करते थे। 35 वर्ष पूर्व मां तीनों बच्चों को लेकर घर से चली गई। उस वक्त वे काफी छोटे थे। बड़े भाई को कुछ समझ थी। उनके प्रयास से पिताजी को तीन वर्ष बाद हम लोगों के बारे में सूचना मिली तो वे हमें लेकर घर आए। इसके कुछ दिन बाद (30 वर्ष पहले) मां अकेली ही घर से गायब हो गईं। उनकी काफी खोजबीन की गई, लेकिन कहीं पता नहीं चला।
2009 में जब पिता जी का निधन हुआ तो उनके साथ ही मां का पुतला बनाकर दाह संस्कार कर दिया गया। 10 फरवरी को मुफस्सिल थाने के चौकीदार ने सूचना दी कि उनकी मां कोलकाता में हैं। सूचना कोलकाता पुलिस ने दी है। बड़े भाई मिथिलेश राय के साथ 14 फरवरी को कोलकाता गया। वहां से कल रात मां को लेकर आए। मां ट्रेन से आने को तैयार नहीं थी। मानसिक रूप से कमजोर होने के कारण इधर-उधर भाग भी रही थी।
दिनेश के बड़े भाई राजमिस्त्री हैं जबकि वो और एक भाई गुजरात में काम करते हैं। मिथिलेश व दिनेश की शादी हुई है। दोनों की पत्नियां भी सास को पाकर काफी खुश हैं।