नई दिल्ली जे. जयललिता का मंगलवार शाम चेन्नई में मरीना बीच पर अंतिम संस्कार किया गया। हिंदू रीति से दाह संस्कार करने के बजाय उनके एमजी रामचंद्रन की समाधि के पास ही चंदन के ताबूत में पूरे राजकीय सम्मान के साथ दफनाया।
जयललिता ने एमजीआर को जीवनभर अपना आदर्श माना। अम्मा के नाम से मशहूर करिश्माई नेता को श्रद्धांजलि देने मरीना बीच पर लाखों लोग जमा हुए। अंतिम संस्कार की सभी रस्में करीबी सहयोगी रहीं उन शशिकला नटराजन ने पूरी कीं, जिन पर कभी जयललिता को जहर देकर मारने की साजिश रचने का आरोप लगा था।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश के कई नेताओं ने चेन्नई जाकर जयललिता को श्रद्धांजलि दी। उनके निधन पर केंद्र सरकार ने मंगलवार को एक दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया। संसद के दोनों सदनों में श्रद्धांजलि के बाद कार्यवाही स्थगित कर दी गई। अम्मा के निधन से शोक में डूबे तमिलनाडु में मातमी माहौल है। सात दिन का राज्यव्यापी शोक है तो स्कूल-कॉलेजों में तीन दिन का अवकाश। उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल ने भी एक दिन का शोक रखा।
अम्मा के रूप में तमिलनाडु की जनता के दिलों पर राज करने वाली 68 वर्षीय जयललिता का चेन्नई के अपोलो अस्पताल में सोमवार रात निधन हो गया था। वह ढाई माह से अस्पताल में भर्ती थीं। जयललिता के पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए पहले राजाजी हॉल में रखा गया। जहां हजारों समर्थक अपनी ‘पुराची थलैवी अम्मा’ (क्रांतिकारी नेता अम्मा) को अंतिम विदाई देने कतार में खड़े रहे।
पार्थिव शरीर को राजाजी हॉल की सीढि़यों पर शीशे के बक्से में राष्ट्रीय ध्वज में लपेटकर रखा गया था। तमिलनाडु के नवनियुक्त मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम और उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों, सांसदों, विधायकों आदि ने दिवंगत मुख्यमंत्री को सबसे पहले श्रद्धांजलि दी। उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए कई राज्यों के मुख्यमंत्री भी पहुंचे। इनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चौहान भी थे।
जयललिता की अंतिम यात्रा राजाजी हॉल से शाम साढ़े चार बजे के बाद शुरू होकर मरीना बीच पहुंची। पार्थिव देह को फूलों से सजे सेना के ट्रक से ले जाया गया।
आयंगर ब्राह्मणों में दाह संस्कार की प्रथा के बावजूद तमिलनाडु सरकार और अंत तक जयललिता की सहयोगी रहीं शशिकला नटराजन ने उन्हें दफनाने का फैसला लिया। लोग इसे द्रविड़ आंदोलन से जोड़ रहे हैं। पेरियार, अन्नादुरई और एमजी रामचंद्रन जैसे द्रविड़ आंदोलन के बड़े नेताओं को भी दफनाया गया था। हालांकि जयललिता इन बड़े नेताओं के विपरीत आस्तिक थीं। दफनाने की एक बड़ी वजह यह भी बताई जा रही है कि बड़े नेताओं को दफनाए जाने के बाद समाधि बनाने का चलन है।