जिन लोगों में मर्यादा, संस्कार और कुशलता का ज्ञान होता है वह श्रेष्ठ कहलाते हैं: आचार्य चाणक्य

हर व्यक्ति की ख्वाहिश होती है कि वह श्रेष्ठ बने. इसके लिए वह निरंतर प्रयास भी करता है. लेकिन श्रेष्ठ बनना इतना आसान नहीं है. श्रेष्ठता को प्राप्त करने के लिए उसी तरह से श्रम करना पड़ता है जिस प्रकार से एक लौहार लोहे को गर्म कर उसका आकार बदलता है.

आचार्य चाणक्य के अनुसार मनुष्य के सामने दो मार्ग होते हैं, एक श्रेष्ठता का और दूसरा दुष्टता का. इन दोनों का अंतर ही व्यक्ति को अच्छा और बुरा बनाता है. श्रेष्ठ बनने के लिए व्यक्ति उच्च आर्दशों को अपनाना पड़ता है. जिन लोगों को मर्यादा, संस्कार और कुशलता का ज्ञान होता है वह श्रेष्ठ कहलाते हैं.

कुछ लोग श्रेष्ठ होने का नाटक करते हैं, क्योंकि उनके पास प्रतिभा की कमी होती है जिस कारण कुछ समय बाद उनकी असलियत सामने आ जाती है. श्रेष्ठता मौलिकता में निहित है.

जिनके पास मौलिक विचार और चिंतन है वे श्रेष्ठ कहलाने के हकदार होते हैं वहीं जो लोग नकल करते हैं दूसरे के विचारों को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत कर वाहवाही बटोरने का प्रयास करते हैं वे श्रेष्ठ नहीं होते हैं. क्योंकि नकल करने वाले कभी श्रेष्ठ नहीं होते हैं. इसलिए इन बातों का ध्यान रखना चाहिए-

विचारों से ही व्यक्ति श्रेष्ठ बनता है. जिन लोगों के विचार अच्छे और मौलिक होते हैं उन्हें सम्मान प्राप्त होता है. मौलिक विचार सभी के लिए उपयोगी होते हैं इसलिए उनका महत्व सभी जगह पर होता है. इसलिए व्यक्ति को अपने मौलिक विचारों को विकसित करना चाहिए.

अलग और बुद्धिमान दिखने के लिए दूसरों के विचारों की नकल नहीं करनी चाहिए. यह आदत स्वयं के सृजन में सबसे बड़ी बाधा होती है. क्योंकि नकल करने वालों के बारे में एक न एक दिन पता चल ही जाता है, यह स्थिति लज्जित करने वाली होती है.

व्यक्ति को चिंतनशील होना चाहिए. जो व्यक्ति भूत,वर्तमान और भविष्य को लेकर चिंतनशील रहता है. वह गंभीर होता है. चिंतन करने से व्यक्ति के भीतर गंभीरता आती है जो किसी भी कार्य को करने के लिए एक जरुरी तत्व की तरह है. चिंतनशील बनने के लिए अध्ययन करें, विद्वानों को जानें और उनके बारे में पढ़ें. प्रकृति के रहस्यों को समझें.

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