प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेज इन दिनों मरीजों के कैशलेस इलाज को लेकर पशोपेश में हैं। चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय कैशलैस चिकित्सा योजना के तहत मरीजों को इलाज मुहैया कराने के लिए जो शासनादेश जारी किया गया है, उसके चलते यह दुविधा हुई है। इस आदेश में इलाज के बदले मिलने वाले पैसे को आय मानते हुए ट्रेजरी में जमा कराने को कहा गया है जबकि मेडिकल कॉलेजों को इसी पैसे से इलाज के साधन जुटाने हैं।
राज्य सरकार ने लाखों सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय कैशलैस योजना शुरू की गई है। इसके तहत पांच लाख रुपये तक कैशलेस इलाज की सुविधा मुहैया कराई गई है। योजना के तहत प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेजों में कर्मियों और पेंशनरों का इलाज शुरू करने को बीते दिनों चिकित्सा शिक्षा विभाग की विशेष सचिव ने आदेश और योजना की एसओपी जारी की थी। मेडिकल कॉलेज इस आदेश और योजना के मूल शासनादेश के कई बिंदुओं को लेकर गफलत में हैं। समझ नहीं पा रहे सो विभाग और सांचीज से दिशा-निर्देश मांग रहे हैं।
दरअसल, सरकार ने कैशलैस स्कीम के लिए एक कार्पस फंड बनाया है। मेडिकल कॉलेजों को एक रिवाल्विंग फंड दिया गया है, जिसमें से 50 फीसदी खर्च होते ही वो और पैसे की डिमांड विभाग से करेंगे। इसी धनराशि में से उन्हें इलाज का साजो-सामान जुटाना है। विभागीय आदेश में बाकी योजनाओं की तहत पैसे को आय मानते हुए ट्रेजरी में जमा कराने को कहा गया है।मेडिकल कॉलेज को नहीं बनाने हेल्थ कार्ड
हर कॉलेज में चार लोगों का एक मॉनीटरिंग सेल बनाने को कहा गया है। कॉलेजों को यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा कि सेल में कौन चार लोग होंगे और उनकी भूमिका क्या होगी। वहीं हेल्थ कार्ड बनाए जाने का भी जिक्र इस आदेश में हैं, जबकि हर कर्मचारी और पेंशनर का हेल्थ कार्ड नोडल एजेंसी सांचीज द्वारा ऑनलाइन बनवाए जा रहे हैं। किसी कॉलेज के स्तर पर हेल्थ कार्ड नहीं बनने हैं।