स्टोरी विद्या सिन्हा (विद्या बालन) की जिंदगी में सिर्फ एक चाहत है। वह अपनी पैरालाइज्ड (लकवाग्रस्त) टीनेजर बेटी मिनी को फिर से चलते हुए देखना चाहती है। लेकिन क्या यह सब इतना सहज है? या फिर विद्या सिन्या असल में कालीम्पोंग की दुर्गा रानी सिंह है जो किडनैपिंग और मर्डर केस में वॉन्टेड है?
रिव्यू
सुजॉय घोष ने चार साल पहले दर्शकों को ‘कहानी’ जैसी शानदार फिल्म दी थी। यह उसी का सीक्वल है। कहानी 2 आपके अंदर कौतूहल और जिज्ञासा तो जरूर पैदा करेगी लेकिन पूरी फिल्म के दौरान शायद आपको जकड़ कर न रख सके। इसमें पहली फिल्म जैसी धार और तीखापन नहीं है। हालांकि आप विद्या सिन्हा के किरदार में डूब जाते हैं।
पश्चिम बंगाल के चंदन नगर में एक परेशान कामकाजी मां अपनी पैरालाइज्ड टीनेजर बेटी को संभाल रही है। विद्या सिन्हा का संघर्ष किसी मिडिल क्लास महिला की तरह है जो रोज नई कठिनाइयों से जूझती है। अचानक मिनी गायब हो जाती है और विद्या का एक्सिडेंट हो जाता है। फिर इंद्रजीत (अर्जुन रामपाल) की एंट्री होती है और उसे पता चलता है कि एक महिला का कालीम्पोंग के स्कूल की क्लर्क चेहरा दुर्गा रानी सिंह से मिलता है। विद्या रानी सिंह किडनैपिंग और मर्डर केस में वॉन्टेट है और वह फरार है।
यहां यह बताना जरूरी है कि फिल्म इसलिए चलती है क्योंकि विद्या बालन के दोनों रोल यानी विद्या सिन्हा और दुर्गा रानी सिंह असल से लगते हैं। अब चूंकि पुलिस मामले की जांच कर रही है और यह एक मिस्ट्री है इसलिए फिल्म का प्लॉट रिवील करना ठीक नहीं होगा। फिल्म का बड़ा हिस्सा रात को शूट किया गया है और यह रियल लगता है। अगर आपको 2012 की ‘कहानी’ देखकर कोलकाता से प्यार हो गया था तो आपको कालीम्पोंग भी जरूर पसंद आएगा। बैकग्राउंड स्कोर आपको अंदर तक हिला देगी (थ्रिलर फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर ऐसा ही होना चाहिए) और कैमरा वर्क भी बढ़िया है।
फिल्म में विद्या के लुक एकदम सादा और ग्लैमर से दूर है। प्रमोशन पाने की चाहत रखने वाले इंस्पेक्टर के रोल में प्रभावित करते हैं। अगर आपको थ्रिलर मूवीज पसंद हैं और आप विद्या बालन के कायल हैं तो कहानी 2 को एक बार देखना तो बनता है।
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