भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष महाभियोग प्रस्ताव लाया है. कांग्रेस की अगुवाई में विपक्षी दलों ने राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू को ये प्रस्ताव सौंपा है. ये प्रस्ताव जस्टिस लोया केस में आए फैसले के बाद लाया गया है. शुक्रवार को कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद की अगुवाई में विपक्षी पार्टियों की बैठक हुई. इसके बाद कांग्रेस के समेत 7 विपक्षी दलों के नेता उपराष्ट्रपति को प्रस्ताव सौंपने पहुंचे.
हालांकि, महाभियोग की प्रक्रिया काफी लंबी और जटिल होती है. इस लिए प्रस्ताव को लेकर कांग्रेस में भी एक मत नहीं दिख रहा. आप भी समझें क्या होता है महाभियोग और इसकी पूरी प्रक्रिया.
क्या है महाभियोग?
महाभियोग (Impeachment) का इस्तेमाल सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है. इसी प्रकिया के माध्यम से राष्ट्रपति को भी हटाया जा सकता है. महाभियोग प्रस्ताव तब लाया जाता है जब ऐसा लगे कि इन पदों पर बैठे लोग संविधान का उल्लघंन या दुर्व्यवहार कर रहे हों. अगर ऐसा हो रहा है तो महाभियोग का प्रस्ताव किसी भी सदन में लाया जा सकता है. इसका जिक्र संविधान के अनुच्छेद 62, 124 (4), (5), 217 और 218 में किया गया है.
महाभियोग की प्रक्रिया
महाभियोग प्रस्ताव की प्रकिया को बेहद जटिल माना जाता है. लोकसभा में इस प्रस्ताव को लाने के लिए 100 सांसदों के हस्ताक्षर चाहिए. वहीं, राज्यसभा में इसे लाने के लिए 50 सांसदों के हस्ताक्षर चाहिए होते हैं. अगर ये सदन में पेश होता है तो सदन के अध्यक्ष इसपर फैसला लेंगे. वो चाहें तो इसे स्वीकार कर लें या इसे खारिज भी कर सकते हैं.
अगर अध्यक्ष महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते हैं तो तीन सदस्यों की एक कमेटी आरोपों की जांच करेगी. इस कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के एक जज, हाई कोर्ट के एक चीफ जस्टिस और कोई एक अन्य व्यक्ति को शामिल किया जाता है.
अगर जांच कमेटी को आरोप सही लगते हैं तो ही महाभियोग प्रस्ताव पर संसद में बहस होगी. इसके बाद संसद के दोनों सदनों में इस प्रस्ताव का दो तिहाई बहुमत से पारित होना जरूरी है. अगर दोनों सदन में ये प्रस्ताव पारित हो जाता है तो इसे मंज़ूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा. बता दें, किसी भी जज को हटाने का अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति के पास है.
जजों पर महाभियोग के पुराने मामले
1. मई 1993 में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के जज वी. रामास्वामी को महाभियोग का सामना करना पड़ा था. ये प्रस्ताव लोकसभा में पास नहीं हो पाया था.
2. इसके बाद 2011 में कोलकाता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया. उनपर अनुचित व्यवहार का आरोप था. इसको राज्यसभा में पेश किया गया, जहां से पास होने के बाद इसे लोकसभा में भेजा गया. हालांकि, लोकसभा में इस पर चर्चा होने से पहले ही जज ने इस्तीफा दे दिया.
3. 2011 में ही सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस पीडी दिनाकरन के खिलाफ भी महाभियोग लाने का तैयारी की गई. लेकिन जस्टिस दिनाकरन ने इससे पहले ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
4. 2015 में गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस जे बी पार्दीवाला के खिलाफ भी महाभियोग लाने की तैयारी की गई. उनपर अनुचित टिप्पणी करने के आरोप था. हालांकि महाभियोग से पहले ही उन्होंने अपनी टिप्पणी वापस ले ली.
5. 2015 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस एसके गंगेल के खिलाफ भी महाभियोग लाने की तैयारी की गई थी. लेकिन उनपर लगे आरोप साबित नहीं हो सके.
6. 2016 में आंध्र प्रदेश/तेलंगाना हाई कोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाने की कोशिश की गई. लेकिन इसको जरूरी समर्थन नहीं मिला. इसके बाद 2017 में भी जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के खिलाफ महाभियोग लाने का प्रयास हुआ, लेकिन इस बार भी जरूरी समर्थन न होने की वजह से ये प्रस्ताव न आ सका.
आज तक महाभियोग से नहीं हटे कोई जज
इस तरह से आप कह सकते हैं कि भारत में आज तक किसी जज को महाभियोग लाकर हटाया नहीं गया है. क्योंकि ये प्रकिया इतनी जटिल है कि कभी कार्यवाही पूरी ही नहीं हो सकी.