गुना। पितृपक्ष छह सितंबर से शुरू हो रहे हैं। इन दिनों में अपने पूर्वजों को याद कर तर्पण किया जाता है। श्राद्ध दिवस को ब्राह्मण भोज से पहले पूर्वजों के हिस्से का भोजन कौआ और मछली को कराना अच्छा बताया जाता है। लेकिन अक्सर देखने में आता है कि कौआ अब दिखते नहीं हैं और मछली तालाबों या पोखरों में पाए जाने से आसानी से मिलती नहीं हैं। ऐसे में शहर के प्रतिष्ठित ज्योतिषाचार्य पं लखन शास्त्री ने विकल्प सुझाया है।एक ऐसा मंदिर जहां मोबाइल फोन पर भक्तों की पुकार सुनते हैं गणेश जी
पं शास्त्री कहते हैं कि यदि कौआ और मछली न मिले तो गाय को पूर्वजों के हिस्से का भोजन दे सकते हैं। श्राद्ध पक्ष में कौआ और मछली का जितना महत्व है, उतना ही गाय का भी है।
पं. लखन शास्त्री के अनुसार श्राद्ध के दिन तर्पण के बाद पूर्वजों के भाग का भोज कौआ, मछली, गाय, कन्या, कुत्ता और मांगने वाले को दे सकते हैं। लेकिन इसमें कौआ, मछली और गाय का विशेष महत्व है। कौआ और मछली न मिलने पर प्रधान गाय को भोजन दिया जा सकता है।
पं. शास्त्री ने बताया कि पितृपक्ष 6 सितंबर से शुस्र् होंगे और 19 सितंबर को पितृ अमावस्या रहेगी। 20 सितंबर को नाना का श्राद्ध के साथ पितृपक्ष का समापन होगा। पं. शास्त्री ने बताया कि पितृपक्ष में पूर्वजों की शांति के लिए आव्हान किया जाता है। सुबह स्नान कर नदी, तालाब या घर में किसी बर्तन में काली तिल्ली, दूब, जौ आदि रखकर जल से तर्पण करें। इस दौरान पहले देवतर्पण, इसके बाद ऋ षि तर्पण और पितृदर्पण करें। 21 सितंबर से नवरात्र घटस्थापना के साथ प्रारंभ होगा।