वसंत पंचमी का पर्व मां सरस्वती को समर्पित है। इस साल 29 जनवरी को वसंत पंचमी पड़ रही है। सनातन परंपरा में मां सरस्वती का महत्वपूर्ण स्थान है। मां सरस्वती ज्ञान, कला और संगीत की देवी हैं। आइए जानते हैं शास्त्रों में उनके जन्म को लेकर क्या कहा गया है।

महाकवि कालिदास ने ऋतुसंहार नामक काव्य में इसे ”सर्वप्रिये चारुतर वसंते” कहकर अलंकृत किया है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने ”ऋतूनां कुसुमाकराः” अर्थात मैं ऋतुओं में वसंत हूं, कहकर वसंत को अपना स्वरुप बताया है। वसंत पंचमी के दिन ही कामदेव और रति ने पहली बार मानव ह्रदय में प्रेम और आकर्षण का संचार किया था। इस दिन कामदेव और रति के पूजन का उद्देश्य दांपत्त्य जीवन को सुखमय बनाना है, जबकि सरस्वती पूजन का उद्देश्य जीवन में अज्ञानरूपी अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश उत्त्पन्न करना है।
ऐसे हुआ देवी सरस्वती का प्राकट्य
सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने जीवों खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे, उन्हें लगा कि कुछ कमी रह गई है, जिसके कारण चारों ओर मौन छाया हुआ है। भगवान विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कम्पंन होने लगा। इसके बाद एक चतुर्भुजी स्त्री के रूप में अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ, जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थीं।
ऐसे मिली जीव-जंतुओं को वाणी
ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुर नाद किया, संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया व पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादिनी और बाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि की प्रदाता हैं, संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी कहलाती हैं।
सरस्वती पूजा का रहस्य
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार वसंत पंचमी के दिन श्री कृष्ण ने माँ सरस्वती को वरदान दिया – सुंदरी! प्रत्येक ब्रह्मांड में माघ शुक्ल पंचमी के दिन विद्या आरम्भ के शुभ अवसर पर बड़े गौरव के साथ तुम्हारी विशाल पूजा होगी। मेरे वर के प्रभाव से आज से लेकर प्रलयपर्यन्त प्रत्येक कल्प में मनुष्य, मनुगण, देवता, मोक्षकामी, वसु, योगी, सिद्ध, नाग, गन्धर्व और राक्षस -सभी बड़ी भक्ति के साथ तुम्हारी पूजा करेंगे। पूजा के पवित्र अवसर पर विद्वान पुरुषों के द्वारा तुम्हारा सम्यक् प्रकार से स्तुति-पाठ होगा। वे कलश अथवा पुस्तक में तुम्हें आवाहित करेंगे। इस प्रकार कहकर सर्वपूजित भगवान श्री कृष्ण ने सर्वप्रथम देवी सरस्वती की पूजा की, तत्पश्चात ब्रह्मा, विष्णु , शिव और इंद्र आदि देवताओं ने भगवती सरस्वती की आराधना की। तबसे माँ सरस्वती सम्पूर्ण प्राणियों द्वारा सदा पूजित होने लगीं।
इस पूजा से प्रसन्न होंगी माँ सरस्वती
सत्वगुण से उत्पन्न होने के कारण इनकी पूजा में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियां अधिकांशः सफेद रंग की होती हैं जैसे — सफेद चन्दन, सफेद वस्त्र, सफेद फूल, दही-मक्खन, सफ़ेद तिल का लड्डू, अक्षत, घृत, नारियल और इसका जल, श्रीफल, बेर इत्यादि। वसंत पंचमी के दिन सुबह स्नानादि के पश्चात सफेद अथवा पीले कपड़े पहनकर विधिपूर्वक कलश स्थापना करें। माँ सरस्वती के साथ भगवान गणेश, सूर्यदेव, भगवान विष्णु व शिवजी की भी पूजा अर्चना करें। श्वेत फूल-माला के साथ माता को सिन्दूर व अन्य श्रृंगार की वस्तुएं भी अर्पित करें। वसंत पंचमी के दिन माता के चरणों पर गुलाल भी अर्पित करने का विधान है। प्रसाद में माँ को पीले रंग की मिठाई या खीर का भोग लगाएं।
वसंत पंचमी के दिन यथाशक्ति ”ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः ” का जाप करें। माँ सरस्वती का बीजमंत्र ” ऐं ” है, जिसके उच्चारण मात्र से ही बुद्धि विकसित होती है। इस दिन से ही बच्चों को विद्या अध्ययन प्रारम्भ करवााना चाहिए। ऐसा करने से बुद्धि कुशाग्र होती है और माँ की कृपा जीवन में सदैव बनी रहती है।
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