यह तो सभी जानते होंगे कि श्रीराम ने एक बार अश्वमेध यज्ञ किया था जिसके घोड़े को उनके ही पुत्रों लव व कुश के द्वारा पकड़ा गया था और दोनों के बीच युद्ध भी हुआ था लेकिन क्या आप जानते है कि प्रभु श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े के कारण उन्हें भगवान् शिव से भी युद्ध करना पड़ा था. आइये जानते है. भगवान् राम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा जब देवपुर नामक राज्य कि सीमा पर पहुंचा तब वहां के राजा वीरमणि के पुत्रों रुक्मागंद व शुभगंद ने उस घोड़े को पकड़ लिया. उस राज्य के राजा वीरमणि भगवान् शिव के परम भक्त थे व उन्हें भगवान् शिव से वरदान प्राप्त था कि वह किसी भी विपत्ति में उनके राज्य कि रक्षा करेंगे.
जब राजा वीरमणि को इस घोड़े के विषय में जानकारी प्राप्त हुई कि वह घोड़ा प्रभु श्रीराम का है तब उन्होंने अपने पुत्रो से उस घोड़े को छोड़ देने के लिए कहा लेकिन वीरमणि के पुत्रों ने कहा कि क्षत्रिय कभी भी बिना युद्ध किये अपनी पराजय स्वीकार नहीं करते. और दोनों के बीच युद्ध आरम्भ हो गया. जिसमे हनुमान जी, शत्रुध्न, सुग्रीव और भरतपुत्र पुष्कल के सामने राजा वीरमणि अपने आप को असहाय महसूस कर रहे थे. इस कारण से उन्होंने भगवान् शिव से अपने राज्य कि रक्षा करने कि प्रार्थना कि जिससे भगवान् शिव ने अपने अंश वीरभद्र व अन्य गणों को युध्भूमि में राजा वीरमणि कि सहायता करने के लिए भेजा.
शिव गणों के युद्ध भूमि में आते ही युद्ध ने और अधिक भीषण रूप धारण कर लिया. अब युद्ध हनुमान जी नंदी के शिवास्त्र से घायल हो गए थे व भरतपुत्र पुष्कल कि भी राजा वीरमणि ने हत्या कर दि थी जिसके कारण प्रभु श्रीराम को युद्ध के लिए आना पड़ा.
जब प्रभु श्रीराम युद्ध भूमि में पहुंचे तब पुष्कल कि मृत्यु को देखकर उन्हें बहुत क्रोध आया व उन्होंने अपने दिव्य अस्त्रों से शिवगणों पर प्रहार किया जिसके कारण उनके बीच हाहाकार मच गया. इसे देखकर भगवान् शिव स्वयं युध्भूमि में पहुंचे. और श्रीराम से कहा कि मैंने राजा वीरमणि को उसके राज्य कि रक्षा करने का वरदान दिया है इस कारण से आप अपने अस्त्रों का त्याग कर दो. भगवान शिव कि इस बात को सुनकर प्रभु श्रीराम युद्ध के लिए तत्पर हो गए.
तब दोनों के बीच भीषण युद्ध प्रारंभ हो गया और अंत में प्रभु श्रीराम ने भगवान् शिव के द्वारा दिए गए पाशुपतास्त्र का प्रयोग उन्हीं पर किया जिससे वह जाकर भगवान् शिव के सीने में विलीन हो गया जिससे भगवान् शिव प्रसन्न हो गए व युद्ध को विराम देते हुए प्रभु श्रीराम से वरदान मांगने को कहा तब भगवान् राम ने उन सभी को जीवित करने के लिए कहा जो इस युद्ध में मारे गए थे. भगवान् शिव उनकी इच्छा कि पूर्ती कर अंतर्ध्यान हो गए. व राजा वीरमणि के पुत्रों ने यज्ञ के अश्व को वापस कर दिया जिसकी सुरक्षा के लिए वीरमणि हनुमान व अन्य सभी के साथ उस अश्व के पीछे चले गए.