जानिए क्या है ये, अमेरिका spell bee प्रतियोगिता में भारतीयों का दबदबा, चलिए जानते है कैसे हुई इसकी शुरुआत

अमेरिका में भारतवंशी किशोर की धूम है, जिसने कड़े मुकाबले में जीती है स्पेलिंग बी प्रतियोगिता। लेकिन क्या है स्पेलिंग बी? कैसे बढ़ रहा इसमें भारतवंशियों का दबदबा? चलिए जानते हैं…

अमेरिका में आयोजित हुई साउथ एशियन स्पेलिंग बी प्रतियोगिता 2019 में एक बार फिर भारतवंशी ने परचम लहराया है। न्यू जर्सी के 13 वर्षीय किशोर नवनीत मुरली ने प्रतियोगिता अपने नाम कर ली है। अंतिम चरण में ‘फ्लाइप’ शब्द की सही वर्तनी बताकर नवनीत ने राष्ट्रीय खिताब के साथ तीन हजार डॉलर का नकद इनाम जीता है। अमेरिका में प्रचलित इस प्रतियोगिता में भारतीय मूल के बच्चों का खास दबदबा रहा है। स्पेलिंग बी को लेकर अब भारत में भी उत्सुकता बढऩे लगी है। 

 

प्रतियोगिताएं तो अनेक प्रकार की होती हैं, लेकिन कठिन से कठिन शब्दों की स्पेलिंग बताने की स्पर्धा अपने आप में अनूठी है, जिसे स्पेलिंग बी के नाम से जाना जाता है। कुछ समय पहले अमेरिका के मेरीलैंड स्थित ऑक्सोन हिल में आयोजित 92वां स्क्रिप्स नेशनल स्पेलिंग बी प्रतियोगिता काफी ऐतिहासिक रहा था। पहली बार कोई एक विजेता नहीं रहा, बल्कि आठ बच्चों के बीच टाई हुआ। यानी 20 राउंड के बाद कुल 565 प्रतिभागियों में से आठ बच्चे विजेता घोषित किए गए। इनमें से सात भारतीय मूल के अमेरिकी बच्चे थे। कमाल की बात यह भी है कि 2008 से लगातार भारतीय मूल के अमेरिकी बच्चे इस प्रतियोगिता को जीतते आ रहे हैं। 

अमेरिका में हुई शुरुआत 
अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर ये स्पेलिंग बी है क्या? यह एक ऐसी प्रतियोगिता है, जिसमें प्रतिभागियों से अंग्र्रेजी के कठिन व जटिल शब्दों की स्पेलिंग (अक्षर-विन्यास) के बारे में पूछा जाता है। अमेरिका की इस राष्ट्रीय प्रतियोगिता में दो से ढाई मिनट का समय दिया जाता है। यानी इतने समय के अंदर उच्चारित शब्द की स्पेलिंग बतानी होती है। 

इस कॉन्सेप्ट की उपज सबसे पहले अमेरिका में ही हुई। वहां मनोरंजन यानी समय बिताने के लिए स्पेलिंग बी प्रतियोगिताएं आयोजित होने लगीं। धीरे-धीरे दुनिया के अन्य देशों में इसका प्रसार हुआ। अमेरिका में नॉर्थ-साउथ फाउंडेशन एजुकेशनल ऑर्गेनाइजेशन और साउथ एशियन स्पेलिंग बी ऑर्गेनाइजेशन अपनी-अपनी स्पेलिंग बी प्रतियोगिता आयोजित करते हैं। 

भारत में बढ़ी लोकप्रियता 

 

भारत में पहला स्पेलिंग कॉम्पिटीशन, हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस लिमिटेड कंपनी द्वारा 2009 में आयोजित किया गया था। इसमें नौ से 14 साल की उम्र के ढाई लाख के करीब बच्चों ने हिस्सा लिया था। बाद में स्पेल बी इंटरनेशनल, इंडिया स्पेलिंग बी, विज स्पेल बी जैसी संस्थाएं इस तरह की प्रतियोगिता आयोजित करने लगीं। इंडिया स्पेलिंग बी के अजय अग्रवाल बताते हैं, हमारे यहां के कॉम्पिटीशंस बेशक स्क्रिप्स जैसी प्रतियोगिताओं से प्रेरित नजर आते हैं, लेकिन स्कूल लेवल को छोड़ दें, तो बाकी लेवल्स का फॉरमेट बिल्कुल अलग होता है। जैसे, स्क्रिप्स की नेशनल प्रतियोगिता मौखिक होती है।  

एक गलत स्पेलिंग प्रतिभागी को बाहर कर सकती है,जबकि हमारे यहां ऑल राउंड स्पेलिंग एवं वोकैबुलरी स्किल टेस्ट होता है। इसमें क्रॉसवड्र्स, एनोग्र्राम्स, मौखिक एवं लिखित राउंड्स आदि होते हैं। अजय का कहना है कि ऐसी प्रतियोगिताओं से साबित होता है कि स्पेलिंग की कितनी महत्ता है, जो अमूमन नजरअंदाज कर दिया जाता है। जब शब्दों में त्रुटियां करने की आदत बन जाती है और अंकों पर असर पडऩे लगता है, तब नींद खुलती है।  

स्कूलों का बढ़ा ध्यान 

 

कोलकाता स्थित विजस्पेल संस्था बीते कई वर्षों से राष्ट्रीय स्पेलिंग बी प्रतियोगिता करा रहा है। संस्था के संस्थापक पी.डी. सेबेस्टियन बताते हैं कि कैसे उन्होंने शहर के नौ स्कूलों के 2200 बच्चों के साथ पहली प्रतियोगिता आयोजित की थी। लेकिन आज 22 राज्यों के 5000 स्कूलों के आठ लाख से अधिक बच्चे इसमें हिस्सा ले चुके हैं। सेबेस्टियन आगे बताते हैं, हम स्टूडेंट्स को स्पेलिंग, कम्युनिकेशन स्किल सुधारने के साथ ही अपनी वौकेबुलरी को समृद्ध करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

उन्हें शब्दों का सही उच्चारण करने के साथ ही अंग्र्रेजी के सही प्रयोग के बारे में भी बताते हैं। कॉम्पिटीशन के जरिये स्टूडेंट्स प्रतिस्पर्धियों से सीखते हैं और अपनी लैंग्वेज स्किल को डेवलप करते हैं, जो उन्हें आगे करियर में भी मदद करती है। इन्होंने बताया कि कई स्कूलों की अंग्र्रेजी की टीचर्स और प्रिंसिपल से फीडबैक मिली है कि स्पेल बी के आने से बच्चों की वर्कशीट या परीक्षा पेपर में स्पेलिंग एवं ग्र्रामर की गलतियां पहले से काफी कम हो गई हैं। इससे अच्छा क्या हो सकता है। 

आम चलन के शब्दों से परिचय
2018 में बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘ब्रेकिंग द बी’ बताती है कि कैसे अमेरिका की स्क्रिप्स जैसी प्रतियोगिता के विजेता 13 साल की उम्र तक में अंग्र्रेजी के इतने शब्दों को कंठस्थ कर लेते हैं, जिसकी जानकारी हम पूरी जिंदगी हासिल नहीं कर पाते। विशेषज्ञों की मानें तो एक ओर जहां स्क्रिप्स जैसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में कठिन शब्दों का चयन दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। बच्चे उन शब्दों को याद करने में लगे हैं जिनका रोजमर्रा के जीवन में कोई उपयोग नहीं। अजय कहते हैं, हम विदेशी प्रतियोगिताओं से तुलना नहीं करते।  

हमें डिक्शनरी की दुनिया से बाहर निकलना होगा। इसलिए कोशिश बच्चों को उन शब्दों से परिचित कराने की है, जिनका आम बोलचाल एवं लेखन में प्रयोग होता हो। इसके साथ-साथ स्कूलों और पैरेंट्स का ध्यान स्पेलिंग की ओर दिलाने का प्रयास है, जिससे कि वे वोकैबुलरी यानी शब्दकोष को समृद्ध करने में बच्चों की मदद करें। अच्छी बात यह है कि देश भर के स्कूलों से काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। अब तक मणिपुर, तमिलनाडु, राजस्थान समेत 20 राज्यों के बच्चे इंडिया स्पेल बी प्रतियोगिता में शामिल हो चुके हैं। 

स्पेल बी विजेता बने एंटरप्रेन्योर     

 

अमेरिका के टेक्सास निवासी शोभा और सौरव दासारी मूल रूप से आंध्रप्रदेश के हैं। लेकिन इनके माता-पिता 13 वर्ष पहले अमेरिका जा बसे। इनकी स्पेलिंग बी में दिलचस्पी हुई और वे प्रतियोगिता में भाग लेने लगे। 18 वर्षीय शोभा जहां चार बार की सेमिफाइनलिस्ट रही हैं,  2016 में सौरव ने स्क्रिप्स नेशनल स्पेलिंग बी प्रतियोगिता में चौथा स्थान हासिल किया था। लेकिन बीते साल (2018) इन दोनों ने एक ऐसा प्लेटफॉर्म लॉन्च करने का फैसला लिया, जिसके जरिये बच्चों को प्रतियोगिता की तैयारी करने में आसानी हो और फिर शुरुआत हुई स्पेलपंडित की।   

इसमें बच्चों को पूरी डिक्शनरी पढ़कर शब्दों की सूची बनाने की जरूरत नहीं पड़ती। वे शब्दों को टाइप कर उन्हें याद कर सकते हैं। घर के सदस्यों द्वारा क्विजिंग करने पर जहां घंटे में 100 शब्दों का रिवीजन होता था, इस प्लेटफॉर्म से प्रति घंटे 1000 शब्दों का अभ्यास कर सकते हैं। 

1999 में नुपूर लाला ने जीता था पहला खिताब

 

प्रोविडेंस के रोड आइलैंड हॉस्पिटल में न्यूरोलॉजी में रेजिडेंसी कर रहीं नुपूर लाला, भारतीय मूल की वह पहली अमेरिकी हैं, जिन्होंने 1999 में 14 वर्ष की आयु में स्क्रिप्स नेशनल स्पेलिंग बी प्रतियोगिता का खिताब जीता था। 2002 में इन पर स्पेलबाउंड नाम से एक डॉक्यूमेंट्री भी बनी, जिसे ऑस्कर के लिए नामांकित किया गया। नुपूर के पिता 1984 में मध्य भारत के एक छोटे से शहर से अमेरिका के न्यूयॉर्क गए थे और 1997 में वह टंपा जाकर बस गए। 

वैसे तो अंग्रेजी में कई शब्दकोष प्रचलन में हैं। लेकिन अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जहां मेरिएम-वेबस्टर डिक्शनरी से शब्द पूछे जाते हैं। वहीं, भारत में ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी का प्रयोग होता है।

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