सर्द मौसम एक बार फिर भारत अौर नेपाल के रिश्तों में गर्माहट लेकर आया है। लेकिन आप इस गर्माहट को दोनों देशों के बीच की तल्खी से जोड़कर बिल्कुल न देखें। यह गर्माहट नाते और रिश्तों की है। दरअसल मानसूनी सीजन के कारण चार माह तक एक-दूसरे से दूर हो गए नाते, रिश्तेदारों के मिलने का सिलसिला फिर शुरू हो गया है। बारिश में एक दूसरे से सम्पर्क कटने के बाद अब नाते -रिश्तेदार काली नदी को नाव से पार कर मिलने आने जाने लगे हैं।
दोनों देशों के बीच है रोटी-बेटी का संबंध
भारत और नेपाल मित्र राष्ट्र हैं। दोनों के बीच रोटी और बेटी का संबंध है। सीमा पर तो कुछ स्थानों पर ईष्टदेव के मंदिर भी एक हैं। जिसके चलते दोनों देशों के बीच रिश्तेदारी निभाने से लेकर पूजा अर्चना के लिए आवाजाही चलती रहती है। भारत और नेपाल के मध्य जिले की सीमा के अंतर्गत मात्र छह पुल सीतापुल गब्र्याग, ऐलागाड़, धारचूला, बलुवकोट, जौलजीवी और झूलाघाट हैं। झूलाघाट से पंचेश्वर लगभग किमी की दूरी पर भारत नेपाल को जोडऩे के लिए कोई पुल नही है। दोनों देशों की सीमा पर स्थित गांवों की नाते, रिश्तेदारी एक दूसरे के यहां है। हर शुभ कार्य में आपस में निमंत्रण होते हैं।
दाेनों देशों के बीच का संपर्क है नाव
झूलाघाट से पंचेश्वर के मध्य पुल नहीं होने से इस पहाड़ी तीव्र वेग वाली नदी में जहां कुछ समतल है और नदी के पाट चौड़े हैं वहां पर नाव चलती है। नाव का संचालन नेपाल करता है। नाव के लिए टेंडर प्रकिया नेपाल में ही चलाई जाती है। इसके लिए दो स्थलों हल्दू और देवताल को चयनित किया गया है। साल के आठ माह तक तो नाव के माध्यम से एक दूसरे के यहां आना जाना लगा रहता है। मानसून काल में जब काली नदी विशाल रौद्र रूप ले लेती है तो नावों का संचालन बंद हो जाता है। इस बीच नाते , रिश्तेदारों को 76 किमी वाहन से चल कर झूलाघाट पहुंचना पड़ता है। भारत के हल्दू सहित आसपास के ग्रामीण नदी पार अपनी नाते, रिश्तेदारी में जाने के लिए हल्दू से 40 किमी दूर पिथौरागढ़ पहुंचते हैं। पिथौरागढ़ से वाहन बदल कर फिर 36 किमी दूर झूलाघाट जाते हैं। झूलाघाट पुल से नेपाल में प्रवेश करते हैं।
झूलापुल नहीं होने का जनता भुगत रही खामियाजा
मानसून काल समाप्त होने के बाद अब काली नदी का रौद्र रू प शांत हो चुका है। लंबे समय बाद एक बार फिर हल्दू और देवताल के पास नावें चलने लगी हैं। चार माह तक दूर हो चुके नाते, रिश्तेदारों के बीच की दूरी घट चुकी है। क्षेत्र के युवा समाज सेवी मनोज चंद बताते हैं कि झूलाघाट से पंचेश्वर के बीच दोनों देशों को जोडऩे के लिए झूलापुल नहीं होने का खामियाजा दोनों देशों की जनता भुगत रही है। पुल होने पर बिना खर्च किए ही आवजाही होती परंतु नाव में एक बार नदी पार करने का खर्च प्रति व्यक्ति 30 से 50 रु पया आ जाता है।