आने वाले कुछ सालों में धरती पर जिस तरह का बदलाव होने वाला है उसने अभी से मौसम विज्ञानियों की चिंता बढ़ा दी है। आगे जानिए…
अगले 50 वर्षों में धरती का तापमान दो से चार डिग्री तक बढ़ जाएगा। जलवायु में तेजी से बढ़ रहे सल्फेट एयरोसॉल और सीओटू की वजह से यह बढ़ोतरी हो रही है। देहरादून के भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) पहुंचे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी (आईआईटीएम) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अतुल सहाय ने अमर उजाला से विशेष बातचीत में यह दावा किया है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड सहित पूरे हिमालय परिक्षेत्र में तापमान में चार डिग्री तक की बढ़ोतरी होना चिंता का विषय है।
सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी यूनाइटेड किंगडम के साथ मिलकर आईआईटीएम लगातार शोध कर रहा है। इसी शोध में हाल ही में यह तथ्य सामने आया है कि जितनी तेजी से वायुमंडल में सल्फेट एयरोसॉल और कार्बन-डाई-ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है, उतनी ही तेजी से तापमान में भी बढ़ोतरी हो रही है। इस लिहाज से आने वाले 50 वर्षों में धरती का तापमान दो से चार डिग्री बढ़ जाएगा। चिंता की बात यह है कि उत्तराखंड सहित हिमालयन परिक्षेत्र में कई जगह पहाड़ का तापमान चार डिग्री तक बढ़ सकता है।
डॉ. अतुल सहाय के मुताबिक, तापमान बढ़ने से जहां ग्लेशियर पिघलने की गति बढ़ेगी तो वहीं इसका दुष्प्रभाव भी विकराल होगा। कार्बन-डाई-ऑक्साइड के अलावा वायुमंडल में सल्फेट और सल्फ्यूरिक एसिड बढ़ने से सल्फेट एयरोसॉल को बढ़ावा मिल रहा है। वैज्ञानिकों ने इस संभावित बढ़ोतरी के बीच बचाव के रास्ते तलाशने शुरू कर दिए हैं। कार्बन उत्सर्जन की मात्रा पर रोक लगाने के साथ ही भारतीय मौसम विभाग इस ओर अध्ययन के लिए 20 रडार लगा रहा है। डॉ. सहाय के मुताबिक, जल्द ही आईआईटीएम की ओर से केंद्र सरकार को इस संभावित बढ़ोतरी को रोकने और इसके दुष्प्रभावों से बचने के लिए एक रिपोर्ट सौंपी जाएगी।
देशभर के वैज्ञानिक तापमान बढ़ने की आशंका तो जता चुके हैं, लेकिन बारिश पर इसका क्या असर पड़ेगा, इसको लेकर अभी असमंजस है। खासतौर से हिमालय परिक्षेत्र में बारिश का अध्ययन काफी मुश्किल है। आईआईटीएम के मुताबिक, अध्ययन में सबसे मुश्किल काम डाटा कलेक्शन का है, जो दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों के बीच से करना है। तापमान बढ़ने से वन्य जीवों पर भी इसका असर पड़ेगा। वैज्ञानिक अब इस पहलू पर भी मंथन में जुट गए हैं। कई प्रजातियां ऐसी हैं, जो तापमान बढ़ने की वजह से बुरी तरह प्रभावित हो सकती हैं। इनमें वन्य जीवों की कई विलुप्त प्राय: प्रजातियां भी हैं।
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