जम्मू संभाग में तेनात डीआइजी सुजीत कुमार ने आतंक के साथ ही कैंसर को भी मात दी

जम्मू संभाग के ऊधमपुर-रियासी रेंज के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ ऑफ पुलिस (डीआइजी) सुजीत कुमार ने आतंक के साथ ही कैंसर को भी मात दी। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से आमना सामना हो या कश्मीर के आतंकवाद से। कैंसर से जूझने के बावजूद कभी हिम्मत नहीं हारी। इलाज के दौरान वह ड्यूटी देते रहे। अब वह पहले की तरह सामान्य जिंदगी जी रहे हैं। कैंसर के मरीजों को प्रेरित करती एक किताब भी लिखी है।

बिहार के जिला रोहतास के गांव नाद के निवासी सुजीत कुमार साल 2007 बैच के जम्मू-कश्मीर कैडर के आइपीएस अधिकारी हैं। प्रशिक्षण के बाद साल 2009 में जब उन्हें जम्मू-कश्मीर भेजा तो उनकी नियुक्ति आतंकग्रस्त दक्षिण कश्मीर में हुई।

उनकी आतंकग्रस्त क्षेत्र बारामुला और सोपोर में भी ड्यूटी रही। आतंकवादियों के खिलाफ कई अभियानों में भाग लिया। इसके बाद जम्मू संभाग के रियासी में एसएसपी पद पर नियुक्ति हुई। वह साल 2016 में सेंट्रल डेपुटेशन पर चले गए।

वहां प्रधानमंत्री के साथ स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप में रहे। इसके बाद नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में सशस्त्र सीमा बल के कमांडेंट के पद पर नियुक्ति हुई। यही से उनका संघर्ष शुरू हो गया।

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ कई ऑपरेशन चलाए। 2017 में अप्रैल में उनके नाक से अचानक खून बहना शुरू हो गया। एम्स सहित कई अस्पतालों में दिखाया। न बीमारी का पता चल रहा था और न खून बंद हो रहा था।

रांची में डॉक्टर सुमित लाल ने सीटी स्कैन कर नाक की नली में कैंसर का पता लगाया। कहते हैं, जिंदगी का बड़ा झटका था। मैंने हिम्मत नहीं हारी। डटकर इलाज करवाया। रेडिएशन के 35 दौर हुए। कई बार कीमोथैरेपी भी हुई। इसने मेरे शरीर को जरूर कमजोर किया, लेकिन मेरे हौसले कभी कम नहीं हुए। मैं इलाज के दौरान लगातार अपनी बटालियन में जाता था।

जवानों का हौसला बढ़ाता था। गत वर्ष 17 मार्च को हुए सीटी स्कैन में डॉक्टरों ने कहा कि अब मैं बिलकुल ठीक हूं। अगले ही दिन मैं फिर ड्यूटी पर था। मुझे फिर से वापस जम्मू-कश्मीर भेजा।

पहले कठुआ-जम्मू रेंज का डीआइजी और अब उधमपुर-रियासी रेंज का डीआइजी हूं। अभी फॉलोअप के लिए अस्पताल जाता हूं, मगर खुश हूं कि कैंसर को पूरी तरह से मात देने में सफल रहा हूं।

भगवान शिव के आराधक डीआइजी सुजीत कुमार का कहना है- सबसे जरूरी है कि आपमें जिदंगी जीने की ललक होनी चाहिए। इलाज बीच में नहीं छोड़ना चाहिए।

कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए ही पुस्तक भी लिखी है। कुछ महीने पूर्व इसका विमोचन हुआ था। उन्होंने कहा कि बीमारी के दौरान स्वजनों और दोस्तों ने बहुत साथ दिया। पत्नी स्निग्धा पेशे से इंजीनियर हैं। लेकिन उन्होंने पति के करियर के लिए अपना करियर छोड़ दिया। तीन बच्चे बेटी शिवालिका, शुभांगीका तथा पुत्र शिवालय हैं।

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