जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के बाद पाकिस्तान बौखला गया है। प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत के साथ लगभग सारे द्विपक्षीय संबंध तोड़ दिए और सारे व्यापारिक रिश्ते खत्म कर लिए हैं। पाक इसकी शिकायत चीन, अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र, रूस, यूएई सहित ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन लेकर गया। लेकिन सभी देशों से उसको मुंह की खानी पड़ी है।
संयुक्त राष्ट्र से मिली ठंडी प्रतिक्रिया
भारत के खिलाफ शिकायत करते हुए पाकिस्तान ने पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र को जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद करने के संबंध में एक पत्र लिखा था। लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने पत्र पर कोई टिप्पणी करने से मना कर दिया।
फिर पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को पत्र लिखकर दावा किया कि जम्मू-कश्मीर पर भारत ने 1949 के यूएनएससी प्रस्ताव का उल्लंघन किया है। इसके जवाब में गुटेरेस ने पाकिस्तान को 1972 में हुए शिमला समझौते का हवाला दिया। 1971 भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान की हार के बाद शिमला समझौता हुआ था, जिसमें कहा गया था कि दोनों देश शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से अपने सभी मुद्दों को द्विपक्षीय रूप से सुलझाएंगे।
अमेरिका से कोई समर्थन नहीं
जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा हटाने के भारत के फैसले को पलटने के लिए पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने के लिए अमेरिका से भी अपील की। लेकिन अमेरिका ने मामले पर तटस्थ भूमिका निभाई है। जम्मू और कश्मीर के विकास और पाकिस्तान की शिकायत पर प्रतिक्रिया देते हुए अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मॉर्गन ऑर्टागस ने कहा कि कश्मीर पर देश की नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। अमेरिका ने संयम बरतने का आह्वान किया और भारत और पाकिस्तान दोनों से इस क्षेत्र में शांति बनाए रखने की अपील की। कश्मीर को लेकर अमेरिका की हमेशा से यह नीति रही है कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय मुद्दा है।
चीन ने आशाओं को किया धराशायी
जम्मू-कश्मीर को लेकर मोदी सरकार के कदम पर चीन ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उसने कहा कि इस कदम ने चीन की संप्रभुता को कमजोर किया है। लेकिन, उसकी यह प्रतिक्रिया लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने तक सीमित थी। शाह महमूद कुरैशी ने चीनी नेताओं के साथ वार्ता के लिए बीजिंग के लिए उड़ान भरी।
कुरैशी और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच एक बैठक के बाद चीन ने एक बयान जारी कर कहा, कश्मीर मुद्दा औपनिवेशिक इतिहास से बचा हुआ विवाद है। इसे संयुक्त राष्ट्र चार्टर, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और द्विपक्षीय समझौते के प्रस्तावों के आधार पर ठीक से और शांति से हल किया जाना चाहिए। चीनी विदेश मंत्री के बयान में द्विपक्षीय समझौते ने कुरैशी की आशाओं को धराशायी कर दिया कि उसके हर मौसम का मित्र चीन उसके साथ अधिक मजबूती से खड़ा होगा।
ओआइसी ने दिया झटका
पाकिस्तान को सबसे तगड़ा झटका ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन (ओआइसी) से लगा। 57 इस्लामिक देशों वाले संगठन ओआइसी ने जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा की। लेकिन जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने को लेकर भारत के साथ पाकिस्तान की कूटनीतिक लड़ाई में शामिल होने से इन्कार कर दिया।
शक्तिशाली ओआइसी सदस्य देश सऊदी अरब और तुर्की ने कश्मीर मुद्दे के निपटारे के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय वार्ता का आह्वान किया है। यूएई ने इसे भारत का आंतरिक मामला बताया। ओआइसी के सदस्य देश आर्थिक भागीदारी और रणनीतिक साझेदारी के लिए भारत को अधिक महत्व देते हैं। भारत ने सभी ओआइसी सदस्यों के साथ अपने आर्थिक और सामरिक संबंधों को मजबूत किया है।
भारत को रूस का मिला खुला समर्थन
मुश्किल की घड़ी में भारत का साथ देने वाले रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि कश्मीर को लेकर मोदी सरकार का फैसला संवैधानिक दायरे में लिया गया है। रूस के इस बयान के बाद पाकिस्तान को तगड़ा झटका लगा है।
तालिबान की फटकार
अफगानिस्तान में मौजूद आतंकी संगठन तालिबान ने भी पाकिस्तान को फटकार लगाई है। तालिबान ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि कश्मीर पर ताजा फैसले के बाद भारत एवं पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव को अफगानिस्तान के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
कंगाली की कगार पर पाक
पाकिस्तान गहरे आर्थिक संकट में है और उसने इस साल सऊदी अरब और चीन से दो अरब डॉलर का कर्ज लिया है। इसकी अर्थव्यवस्था 3.5 फीसद से कम की दर से बढ़ रही है। मंदी के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था 6.5-7.0 फीसद की दर से बढ़ रही है और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के आकार की लगभग नौ गुना है।