बंगलुरु में आयोजित हो रहे ‘द हिंदू हडल’ कार्यक्रम में प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी शनिवार को शामिल हुए। उन्होंने यहां युवाओं को संबोधित किया और उन्हें बताया कि किस तरह गांधीवादी विकास के मॉडल को अपना कर छत्तीसगढ़ सरकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
उन्होंने बताया कि पूरे देश में जहां एक ओर किसान खेती को घाटे का सौदा मानकर उससे विमुख हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों को सबसे ज्यादा प्राथमिकता देते हुए उनके लिए कई योजनाएं चलाई हैं। इसके प्रभाव से छत्तीसगढ़ में किसान खेती के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं और उनकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत हो रही है।
सीएम बघेल ने कार्यक्रम में मौजूद युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि लोग खेती किसानी नहीं करना चाहते, क्योंकि यह घाटे का सौदा माना जाने लगा। हमने इस साल रिकॉर्ड धान खरीदी की। इसके साथ ही राज्य में ग्रामीण विकास के लिए नरवा-गस्र्आ-घुरवा और बारी योजना शुरू की गई है। इस योजना में हम खेती-किसानी और पशुपालन के विकास के लिए इसे रोजगार से जोड़ रहे हैं। इस योजना से युवाओं को रोजगार मिल रहा है।
सीएम भूपेश ने एक उदाहरण देते हुए कहा कि बेंगलुस्र् में जितने भी इंजीनियर काम कर रहे हैं, बड़ी तन्ख्वाह पर काम कर रहे हैं। युवा भी खेती-बाड़ी का काम सम्हालते, अगर उन्हें इसके एवज में जीवन और परिवार चलाने लायक आय होती। हमने महसूस किया कि किसान की आय इतनी कम है कि उससे उसका जीवन यापन दूभर रहता है। इस वजह से लोग खेती से विमुख हो रहे हैं। हमने धान के समर्थन मूल्य पर अतिरिक्त बोनस देकर धान खरीदी की।
किसानों के कर्ज माफ किए, ताकि किसानों को आर्थिक बोझ से मुक्ति मिले और वे इस पेशे की ओर खुशी से वापस लौटें। इसके प्रभाव से इस साल किसानों ने पिछले वर्षों की तुलना में अधिक रकबे में धान का उत्पादन प्राप्त किया है। राज्य में ढ़ाई लाख किसानों ने इस बार अपना धान बेचा। इस साल कुल 82 लाख 80 हजार मीट्रिक टन धान की खरीदी राज्य सरकार ने की है, जो अब तक राज्य में धान खरीदी का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है।
कार्यक्रम के दौरान एक प्रतिभागी ने सीएम से सवाल किया कि हिंदुस्तान में गाय के नाम पर वोट लिया जाता है। मेरा सवाल है कि जो मवेशी दूध देने योग्य नहीं हैं, उन्हें किसान छोड़ देते हैं। ऐसे मवेशियों के लिए आपकी सरकार क्या कर रही है।
सीएम ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि इस विषय पर मैंने लंबा अध्ययन किया, कि किस तरह ऐसे मवेशियों को संरक्षित किया जा सकता है। मैने देखा कि हमारे देश गौशालाएं इस नाम पर चलाई जा रही हैं कि वहां ऐसे मवेशियों की सेवा हो। इन गौ शालाओं को मोटा दान भी मिलती है, लेकिन इस दान से मिले धन का उपयोग गायों पर नहीं होता।
गाय सूख कर दुबली हो रही हैं और गौशाला चलाने वाले मोटे होते जा रहे हैं। इसके बाद हमने गौठान योजना बनाई। इन गौठानों में ऐसे ही पशुओं को रखते हैं। इनके गोबर से वर्मी कम्पोस्ट बना रहे हैं। यह वर्मीक कम्पोस्ट अच्छी कीमत पर बिकता है।
समिति की महिलाएं अब गोबर से पैसा कमा रही हैं। गोबर से पैसा कमाने के लिए उसे चारा खिलाना जरूरी है। बिना चारा खिलाए वह गोबर ही नहीं करेगी। इस तरह गाय का अंतिम उत्पाद भी लोगों के काम आ रहा है। ऐसे में लोग गौसेवा के लिए नि:संदेश प्रेरित हो रहे हैं।