चुनावों में नोटा बटन के बढ़ते उपयोग को देख चुनाव आयोग सक्रिय, जानिए

नोटा (नन ऑफ द अबव) के वोटरों की लगातार बढ़ रही संख्या ने चुनाव आयोग को नोटा पर गंभीरता से विचार करने पर मजबूर कर दिया है। आयोग जल्द ही कानून मंत्रालय से मुलाकात कर इस मामले में कानूनी संशोधन के लिए सिफारिश करने जा रहा है।

चुनाव आयोग की ओर से प्रस्तावित सुझावों को अगर सरकार मान लेती है और संसद कानून में संशोधन करती है तो जीतने वाले उम्मीदवार से ज्यादा वोट नोटा में पड़ने पर उस चुनाव को रद्द किया जाएगा और फिर से मतदान होगा। यह और बात है कि नोटा पर सुप्रीम कोर्ट का सिंतबर 2013 में आया फैसला आयोग के इन विचारों से मेल नहीं खाता।

कोर्ट अपने आदेश में पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि नोटा का चुनाव परिणाम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। वास्तव में नोटा मतदाताओं को प्रत्याशियों के प्रति अपनी नकारात्मक प्रतिक्रिया देने का विकल्प उपलब्ध कराता है। यही नहीं हाल ही में सेवानिवृत्त हुए पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत भी इसके पक्षधर नहीं रहे हैं। लेकिन चुनाव आयोग में कवायद शुरू हो गई है। जनवरी के पहले सप्ताह में आयोग मंत्रालय का दरवाजा खटखटा सकता है।

उल्लेखनीय है कि हाल ही में हरियाणा राज्य चुनाव आयोग ने पांच जिलों में होने वाले नगर निगम चुनाव में नोटा को ज्यादा वोट मिलने की स्थिति में दोबारा चुनाव कराने का फैसला किया था। इससे पहले देश में पहली बार महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग ने भी ऐसा ही फैसला दिया था। इसमें कहा गया था कि नोटा को ज्यादा वोट मिलने पर स्थानीय निकाय चुनाव फिर कराया जाए।

धारा-243 के अंतर्गत अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए राज्यों के चुनाव आयोग ने यह परिवर्तन किए थे। चुनाव आयोग धारा-324 के अंतर्गत ऐसे परिवर्तन कर सकता है। हालांकि पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने दोबारा वोटिंग कराने को अवैध करार दिया था।

आंकड़े पर नजर डालें तो पता चलता है कि 2013 में नोटा लागू होने के बाद से मार्च 2018 तक सभी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में 1.33 करोड़ से ज्यादा वोट नोटा को पड़ चुके हैं। इस बार हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में 15 लाख से ज्यादा वोट नोटा को गए हैं। छत्तीसगढ़ में नोटा को 2 प्रतिशत मत प्राप्त हुए। वहीं, मध्य प्रदेश में नोटा के पक्ष में मतदान 1.4 प्रतिशत हुआ।

राजस्थान में नोटा के पक्ष में मतदान 1.3 प्रतिशत रहा।निर्वाचन आयोग के अधिकारियों का कहना है कि उनके पास ऐसी कोई शक्ति नहीं है कि वह फिर से चुनाव करवा सकें। उनके अनुसार नोटा की पवित्रता को बनाए रखने और नए चुनावों का आदेश देने के लिए कानून में बदलाव करने होंगे और इसके लिए संसद की मुहर लगनी जरूरी है।

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