मई माह में भारत और चीन की सेना के बीच लद्दाख में एलएसी पर शुरू हुआ संघर्ष बीते माह कुछ थमता दिख रहा था। लेकिन बीते करीब एक सप्ताह से परिस्थितियां फिर से बिगड़ती जा रही हैं। चीन की सेना ने लद्दाख में पैंगोंग झील के दक्षिणी हिस्से में अड्डा बनाना शुरू कर दिया है। यह क्षेत्र भारत के सामरिक महत्व के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील है।
भारत ने भी अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा दी है। पिछले सप्ताह विदेश मंत्री स्तर की बातचीत में चीन ने पांच सूत्री संधि की बात मानी थी, जिसमें स्थिति को हर कीमत पर बातचीत के द्वारा तय करने पर सहमति जताई गई थी। लेकिन लगता नहीं है कि चीन कि मंशा ठीक है, क्योंकि उसने हठधर्मिता के साथ कहा है कि वह एक इंच भी नहीं पीछे हटेगा। यानी चीन युद्ध की धमकी दे रहा है।
मई माह में भारत और चीन की सेना के बीच लद्दाख में एलएसी पर शुरू हुआ संघर्ष बीते माह कुछ थमता दिख रहा था। लेकिन बीते करीब एक सप्ताह से परिस्थितियां फिर से बिगड़ती जा रही हैं। चीन की सेना ने लद्दाख में पैंगोंग झील के दक्षिणी हिस्से में अड्डा बनाना शुरू कर दिया है। यह क्षेत्र भारत के सामरिक महत्व के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील है।
भारत ने भी अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा दी है। पिछले सप्ताह विदेश मंत्री स्तर की बातचीत में चीन ने पांच सूत्री संधि की बात मानी थी, जिसमें स्थिति को हर कीमत पर बातचीत के द्वारा तय करने पर सहमति जताई गई थी। लेकिन लगता नहीं है कि चीन कि मंशा ठीक है, क्योंकि उसने हठधर्मिता के साथ कहा है कि वह एक इंच भी नहीं पीछे हटेगा। यानी चीन युद्ध की धमकी दे रहा है।
अगर युद्ध की स्थिति बनती है तो चीन के लिए मुश्किलें कैसे पैदा होंगी, उसकी विवेचना जरूरी है। दरअसल चीन नई विश्व व्यवस्था में मुखिया बनने की कोशिश में है। भारत उस दौड़ में नहीं है। चीन की अंतरराष्ट्रीय छवि पिछले छह महीने में बहुत धूमिल हुई है। कुछ दिन पहले ताईवान ने चीन की सैन्य पनडुब्बी को मिसाइल से ध्वस्त कर दिया था, चीन चीखता रहा, पर हुआ कुछ भी नहीं, क्योंकि ताईवान के सिर पर अमेरिका का हाथ है। दूसरी तरफ चीन के विश्वस्त पड़ोसी देशों, मसलन मलेशिया और थाईलैंड ने भी एक निश्चित दूरी बना ली है।
इस बीच भारत ने पिछले दिनों तिब्बत कार्ड की शुरुआत कर दी है। इसका अंदाजा इस बात से मिलता है कि एक विशेष सैन्य टुकड़ी, जिसे स्पेशल फ्रंटियर फोर्स कहा जाता है, वह खबर में आई है। इस सैन्य टुकड़ी का गठन 1964 में ही किया गया था, लेकिन यह बात चीन तक नहीं पहुंची थी। इसमें तिब्बत के शरणार्थी हैं, जो 1950 में और बाद में दलाई लामा के साथ 1959 में भागकर भारत आ गए थे। पिछली सदी के छठे दशक में इस टुकड़ी को खम्पा विद्रोह के रूप में जाना जाता था, जिसे अमेरिकी मदद से तिब्बत को आजाद करने की व्यूहरचना की गई थी। चूंकि भारत नेहरू की सोच की वजह से खम्पा विद्रोहियों का साथ नहीं दे पाया, वरना तिब्बत पिछली सदी के छठे-सातवें दशक में ही पुन: आजाद देश बन जाता। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
पिछले दिनों एक तिब्बती सैनिक के शहीद होने के बाद उसे भारत और तिब्बत के झंडे में लपेट कर अंतिम विदाई दी गई। यह सब देखकर चीन के होश उड़ गए। चीन की सबसे कमजोर नब्ज तिब्बत ही है। तिब्बत चीन के लिए दीवार की तरह है। अगर वह मजबूत है तो चीन सुरक्षित है, अन्यथा नहीं। भारत ने उसी के मांद में चिंगारी फेंक दी है। इस बीच खबर है कि चीन की सेना भारत के विरुद्ध लड़ने के लिए तिब्बती फोर्स तैयार करने में जुटी हुई है। जिस क्षेत्र को चीन ने दीमक की तरह चाट लिया है, उसे भारत के विरुद्ध लड़ने के लिए तैयार किया जा रहा था।
भारत के प्रयास ने चीन को खतरे में डाल दिया है। मालूम हो कि भारत के स्पेशल फ्रंटियर फोर्स में मूलत: तिब्बती ही हैं, जो अपने देश को आजाद करने के संकल्प के लिए कुर्बानियां दे रहे हैं। सीमा के उस पार भी उसी नस्ल और क्षेत्र के तिब्बती हैं। अंतर इतना सा है कि वह चीन के चंगुल में हैं और ये लोग चीन के चंगुल से आजाद हैं। इस बात की पूरी आशंका है कि कहीं यह युद्ध भारत चीन की लपेट में तिब्बत स्वतंत्रता संग्राम के रूप में न बदल जाए।