अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से प्रधानमंत्री की बातचीत ने दुनिया के देशों को नया संदेश दे दिया है। कूटनीति के जानकार भारत-चीन के विवाद में बेहद अहम मोड़ मान रहे हैं। प्रधानमंत्री से पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने अमेरिकी समकक्ष मार्क एस्पर से बात की थी।
विदेश मंत्री एस जय शंकर, विदेश सचिव हर्ष वर्धन श्रृंगला भी लगातार सक्रिय हैं। इसके सामानांतर भारत-चीन से भी सीमा विवाद, सीमा पर शांति, सीमा सुरक्षा प्रबंधन को विश्वसनीय और मजबूत बनाने के लिए लगतार संपर्क में है।
06 जून को चीन के साथ होने वाली वार्ता में भारतीय सेना की तरफ से लेफ्टिनेंट जनरल स्तर के अधिकारी इसका नेतृत्व करेंगे। कुल मिलाकर भारत संदेश दे रहा है कि सीमा पर चीन की लाल आंखें दिखाने से भारत कहीं से भी असहज नहीं है।
लद्दाख में गालवां नाला और पैंगोग त्सो के पास चीन सैनिकों की अच्छी खासी तादाद है। चीनी वायुसेना के विमानों ने भी क्षेत्र में उड़ान भरी है। इसके जवाब में भारत ने भी तोपों की तैनाती समेत कई कदम उठाए हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, विदेश मंत्री एस जयशंकर, प्रधानमंत्री कार्यालय में विदेश मामलों के अधिकारी गोपाल वागले लगातार तमाम गतिविधियों पर सक्रिय हैं। सीडीएस जनरल रावत की तीनों सेना प्रमुखों से चर्चा के बाद एनएसए, रक्षामंत्री, पीएमओ को दी गई रिपोर्ट भी भारत की तैयारी की तरफ ईशारा कर रही है।
चीन की घुसपैठ को लेकर सेना के एक उच्चधिकारी का कहना है कि अभी तक दोनों तरफ के सैन्य अधिकारियों की बातचीत में कोई नतीजा नहीं निकला है। 06 जून की वार्ता पर हमारी नजर है। इसमें भारत की तरह से 14 कॉर्प्स के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह चीन के अपने समकक्ष के साथ चर्चा कर सकते हैं।
हालांकि सूत्र का कहना है कि इस मामले में भारत को भी निर्णय आने की कोई जल्दबाजी नहीं है। बताते हैं डोकलाम में 73 दिनों तक चीनी सैनिकों के साथ भारतीय सैनिकों के डटे होने की घटना ने काफी कुछ सिखाया है।
सूत्र का कहना है कि देर-सबेर इसका हल निकल आएगा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के अब तक आए वक्तव्य से भी साफ है कि भारत पड़ोसी देश चीन के साथ बहुत सतर्क होकर कदम बढ़ा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से टेलीफोन पर हुई बातचीत को भी सैन्य कूटनीति, विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार काफी अहमियत दे रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय सैन्य मामलों के विभाग से जुड़े एक पूर्व अधिकारी का कहना है कि भारत-चीन के साथ मधुर रिश्तों का इच्छुक है, लेकिन यह रिश्ता बराबरी, आत्म सम्मान के स्तर पर चाहता है।
चीन की धौंस के आगे झुककर नहीं। वायुसेना के पूर्व अध्यक्ष एयरचीफ मार्शल पीवी नाइक भी कहते हैं कि चीन को समझ लेना चाहिए। यह 1962 नहीं है।
चीन के सैनिकों ने लद्दाख में भारतीय सीमा में घुसपैठ की, भारतीय सैनिकों के साथ मारपीट, पत्थर फेंकने जैसी घटना हुई
चीन के उकसावे पर नेपाल ने भी कालापानी, लिपुलेख क्षेत्र में सीमा विवाद के मुद्दे को आक्रमकता के साथ उठाना शुरू किया
पाक अधिकृत कश्मीर में भारत की गंभीर आपत्ति के बाद भी चीन सीपीईसी परियोजना में तेजी ला रहा है। उसने वहां 1124 मेगावाट की बिजली परियोजना स्थापित करने को मंजूरी दी।
चीन की लद्दाख क्षेत्र में घुसपैठ को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड़ ट्रंप ने पहले मध्यस्थता की पेशकश की, फिर प्रधानमंत्री के खराब मूड की जानकारी दी, भारत को जी-7 का सदस्य बनाने का वक्तव्य दिया और मंगलवार 2 जून को प्रधानमंत्री से बात करके उन्हें इसमें शामिल होने का न्यौता दे दिया।
चीन ने भारत को अमेरिका के साथ अंतरराष्ट्रीय व्यापार समेत अन्य मामलों में चल रहे टकराव और गुटबाजी में न पड़ने की नसीहत दी है। इस नसीहत के बाद प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप में वार्ता हुई और अमेरिका ने भारत को जी-7में शामिल होने का प्रस्ताव दिया।
भारतीय सीमा में चीनी सैनिकों की घुसपैठ कोई कोई पहली घटना नहीं है। दोनों देशों के बीच में तमाम स्थानों पर स्पष्ट सीमा निर्धारण नहीं है। इसके चलते कभी चीन की सेना भारतीय क्षेत्र में तो कभी भारतीय सुरक्षा बल चीन के क्षेत्र में चले जाते थे।
लेकिन फ्लैग मीटिंग्स के बाद दोनों वापस अपने-अपने इलाकों में चले जाते थे। पिछले कुछ सालों से चीन के इस व्यवहार में बदलाव आया है। अब चीन के सैनिक आक्रामक तरीके से घुसपैठ कर रहे हैं।
चीन भारत की सीमा के निकट लगातार अपनी सैन्य तैनाती बढ़ा रहा है। इसी इरादे से उसने भारतीय सीमा में घुसपैठ की संख्या बढ़ा दी है। पिछले साल 600 से अधिक बार चीनी सेनाओं ने भारतीय सीमा में घुसपैठ की।
2017 में उसके सैनिक भारत-भूटान-चीन के त्रिकोणीय क्षेत्र के पास और भूटान के डोकलाम में आ डटे। लद्दाख में चीनी सेना पत्थर, कंटीली लाठियां आदि लेकर घुसपैठ के इरादे से आई और जम गई है।
इतना ही नहीं चीन पाकिस्तान का अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुलकर साथ दे रहा है। शंघाई सहयोग संगठन में पाकिस्तान की एंट्री भी चीन के दबाव में हुई है। भारत की तमाम आपत्तियों के बाद भी वह पाक अधिकृत कश्मीर में सीपीईसी परियोजना को धार दे रहा है।
अमेरिका और चीन में व्यापार समेत तमाम क्षेत्र में टकराव बढ़ रहा है। दक्षिण चीन सागर में अमेरिका चीन का विरोध कर रहा है। अमेरिका राष्ट्रपति ट्रंप अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चल रहे हैं।
इसमें उन्होंने अमेरिका के सहयोगी देशों के द्विपक्षीय रिश्ते को वरीयता देने की रणनीति अपनाई है। ऐसे में अमेरिकी हितों को लेकर चीन से ट्रंप ने टकराव को उच्चस्तर दे दिया है। अमेरिका एशिया में अपना दखल बढ़ा रहा है और राष्ट्रपति ट्रंप प्रधानमंत्री मोदी को अपना दोस्त बताते हैं। भारत अमेरिका के लगातार करीब होता जा रहा है।
कूटनीति के जानकार कहते हैं कि इस साल अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव होना है। ट्रंप दूसरे साल के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनकी इस महात्वाकांक्षा के रास्ते में कोविड-19 संक्रमण, उससे निबटने के तरीके, 1 लाख से अधिक अमेरिकियों की मौत सबसे बड़ा कांटा बनी हुई है। इसलिए ट्रंप इसे वुहान का वायरस बता रहे हैं।
गंभीर आरोप लगाते हुए उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन में बदलाव की बात की और संगठन की वित्तीय मदद रोक दी। इतना ही दुनिया के करीब 70 देशों के साथ उन्होंने वायरस के उत्पत्ति और प्रसार के कारणों समेत अन्य की जांच का मुद्दा भी उठाया।
यह भारत ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। यह जांच भी डब्ल्यूएचओ ही करेगा, लेकिन इसमें अमेरिका ने चीन को चिढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
भारत ने हाल में प्रत्यश विदेशी निवेश को लेकर बड़ा कदम उठाया। उसने पाकिस्तान, अफगानिस्तान जैसे देशों के भारत में निवेश पर सरकार की अनुमति लेने की नीति में बदलाव करते हुए पड़ोसी शब्द को जोड़ा है।
माना जा रहा है कि इससे चीन के कारोबारी अब भारत में आसानी से निवेश नहीं कर सकेंगे। भारत ने यह कदम चीन की कंपनियों के इटली में निवेश, चीन में विदेशी कंपनियों की हिस्सेदारी खरीदने, भारत के एक निजी क्षेत्र के बैंक में निवेश करने के बाद उठाया। यह बदलाव चीन को नागवार गुजरा है।
भारत पिछले 10-12 साल से चीन की सीमा से लगे क्षेत्र में सामरिक सड़कें बनाने की परियोजना को आगे बढ़ा रहा है। हाल में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उत्तराखंड में लिपुलेख तक जानी वाली सड़क के उद्घाटन ने आग में घी का काम किया है। चीन खुद तो सीमा के निकट सैन्य और अन्य संसाधनों का विकास कर रहा है, लेकिन भारतीय विनिर्माण उसे खलते हैं।
अमेरिका जी-7 में रूस के दोबारा शामिल होने की इच्छा व्यक्त कर चुका है। राष्ट्रपति ट्रंप प्रधानमंत्री मोदी को न्यौता दे चुके हैं। रूस के अलावा वह दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया को भी इसमें शामिल करने का पक्षधर हैं।
चीन को अमेरिका की इस तरह की गुटबाजी से जहां चिढ़ है, वहीं रूस ने इस तरह के किसी संगठन में चीन का होना भी जरूरी बताया है। अमेरिका की यह गुटबाजी चीन को अलग-थलग करने के तौर पर देखी जा रही है।
समझा जा रहा है कि चीन अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए कनाडा, इटली का सहयोग लेकर जी-7 का विस्तार टालने की कोशिश कर सकता है। रूस के लिए जी-7 जैसे संगठन में शामिल होना उसकी जरूरत है।
इससे जहां अमेरिका को रूस के खिलाफ प्रतिबंध हटाने पड़ेंगे, वहीं यूरोपीय देशों को भी रुख में बदलाव लाना पड़ेगा। इससे रूस की बड़ी शिकायत दूर हो सकती है। लेकिन इन सब परिस्थितियों के बाद भी रूस के चीन का साथ काफी अहम है।
इस तरह से चीन अमेरिका के विरोध की धीरे-धीरे धुरी बनने की तरफ बढ़ रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि भारत और चीन के बीच में इस तरह का टकराव चलता रहेगा।
चीनी मामलों के जानकार कहते हैं कि चीन के रुख में काफी आक्रामक बदलाव आया है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग समझते हैं कि अब दुनिया के सामने चीन के हितों को खुलकर रखने का समय आ गया है।
उनकी नीति अपने पूर्ववर्ती राष्ट्रपति हू जिंताओ से अलग है। वह आक्रामकता में संतुलन बढ़ाकर आगे बढ़ रहे हैं। भारत में चीनी सेनाओं की घुसपैठ भी टैक्टिल मूव को आधार बनाकर हो रही है।
पिछले कुछ सालों से चीन का रवैया देखें तो लगता है कि वह सीमा विवाद नहीं सुलझाना चाहते हैं। दूसरे लगातार बढ़ रही घुसपैठ और आक्रमकता से लगता है कि वह भारत से इस तरह की घटनाओं को बर्दाश्त करने की अपेक्षा रखते हैं।
वायुसेना के पूर्व अध्यक्ष एयरचीफ मार्शल पीवी नाइक कहते हैं कि यह चीन का भ्रम भी हो सकता है। चीन ही नहीं भारत भी बदल रहा है। शक्ति, सामथ्र्य, आर्थिक प्रगति में भी बदलाव हो रहा है।
नाइक कहते हैं कि चीन को 1962 वाले भारत का भ्रम छोड़ देना चाहिए। नाइक कहते हैं कि भारत किसी देश के लिए खतरा नहीं है, लेकिन अपनी सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।