इन दिनों उम्रदराज और वयस्क व्यक्तियों के अलावा युवा वर्ग भी डिप्रेशन की गिरफ्त में तेजी से आ रहा है। इसका कारण यह है कि युवकों को अपने कॅरियर में स्थापित होने के लिए कड़ी प्रतिस्पद्र्धा का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा वह कम वक्त में कामयाबियों की सीढ़ियां तेजी से चढ़ना चाहते हैं। उनमें धैर्य नहीं होता और जब वे अपने जीवन व कॅरियर से संबंधित पहले से ही तयशुदा लक्ष्यों (टार्गेट्स) को पूरा नहीं कर पाते, तब उनके दिलोदिमाग में हताशा व कुंठा घर कर जाती है। यही कारण है। युवावर्ग में डिप्रेशन की शिकायतें बढ़ती जा रही हैं। सकारात्मक सोच के अनुसार व्यावहारिक लक्ष्यों को निर्धारित करने से इस समस्या का समाधान संभव है।
इलाज से मिलेगी राहत
- अगर समस्या है, तो उसका समाधान भी है। डिप्रेशन लाइलाज रोग नहीं है। डिप्रेशन से ग्रस्त अनेक व्यक्तियों को डिप्रेशनरोधक दवाओं (एंटीडिप्रेसेंट मेडिसिन्स) से लाभ मिल जाता है।
- डिप्रेशन के इलाज में साइको-एजूकेशन का अपना विशेष महत्व है। इसके अंतर्गत रोगी और उसके परिजनों को रोग के कारणों व उसके इलाज के बारे में समझाया जाता है। इसके बाद रोगी के परिजनों के सहयोग की जरूरत पड़ती है, लेकिन इस रोग के इलाज में कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी सर्वाधिक कारगर साबित होती है।
- इस थेरेपी की मान्यता है कि हमारे विचार, भावनाएं और व्यवहार आपस में संबंधित हैं। इस थेरेपी के अंतर्गत विभिन्न मनोचिकित्सकीय विधियों के जरिये और काउंसलिंग के माध्यम से रोगी के दिमाग को सकरात्मक विचारों की ओर मोड़ा जाता है।
लक्षणों को समझें
जैविक (बॉयोलॉजिकल): जैसे नींद का न आना या अत्यधिक आना, भूख न लगना, शरीर में थकान व दर्द महसूस होना। इसके अलावा कामेच्छा में कमी महसूस करना और बात-बात पर गुस्सा आना।
कॉग्निटिव सिम्पटम: विचारों में नकारात्मक सोच की बदली छा जाना, स्वयं को हालात के सामने असमर्थ महसूस करना।
समाज से अलग-थलग: व्यक्ति सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने से कतराता है। इसी तरह वह अपने व्यवसाय से संबंधित जिम्मेदारियों का निर्वाह करने में स्वयं को असमर्थ महसूस करता है।