चंद्रशेखर सिंह ने कहा वो अयोध्या मामले को सुलझाने के करीब थे

अयोध्या में राममंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद 69 साल से कोर्ट में है. देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में सोमवार सेअयोध्या की विवादित भूमि पर मालिकाना हक को लेकर सुनवाई शुरू हो रही है. हालांकि इस मामले पर समझौते की पहल पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह से लेकर चंद्रशेखर सिंह तक ने की थी. इनकी कोशिशों अमलीजामा पहनती, लेकिन सियासत ने ऐसी करवट ली कि सारी कवायद फेल हो गई.

वीपी सिंह के दौर में समझौते की पहली पहल

अयोध्या विवाद के समझौते की पहली कोशिश पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के समय में हुई. उन्होंने इस मामले के समधान के लिए दोनों पक्षकारों से बातचीत के सिलसिले शुरू कराए. मामले के समझौते का ऑर्डिनेंस लाया जा रहा था. सियासत ने ऐसी करवट ली कि उन्हें ऑर्डिनेंस को वापस लेना पड़ा

दरअसल समझौते की बीच ही बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर के लिए सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथ यात्रा शुरू कर दी. आडवाणी रथ लेकर बिहार पहुंचे तो प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उन्हें गिरफ्तार करा दिया. केंद्र में बीजेपी के सहयोग से चल रही वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इसके चलते वीपी सिंह की सरकार गिर गई और अयोध्या समझौते की कोशिशें अमलीजामा नहीं पहन सकीं.

चंद्रशेखर ने की समझौते की दूसरी कोशिश

अयोध्या विवाद के समाधान की दूसरी पहल तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के दौर में शुरू हुई और ये समाधान के करीब थी. लेकिन दुर्भाग्य था कि उनकी सरकार चली गई. इस बात का जिक्र एनसीपी अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने अपनी आत्मकथा ‘अपनी शर्तों पर’ में लिखा है.

बता दें कि पवार ने अपनी किताब में लिखा है कि चंद्रशेखर के नेतृत्व में केंद्र सरकार सात माह से अधिक कार्य नहीं कर सकी लेकिन इसी अवधि में इस सरकार ने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को हल करने के गंभीर प्रयास किए. राजस्थान के वरिष्ठ बीजेपी नेता भैरों सिंह शेखावत और मैंने भी इस समस्या के समाधान में प्रयास किया. हालांकि बहुत से लोगों को इस प्रयास की जानकारी नहीं है क्योंकि एक तो यह प्रयास पूर्णत: गैर-सरकारी था. दूसरे, अंतिम रूप में यह प्रयास व्यर्थ हो गया.

तत्कालीन पीएम चंद्रशेखर ने पदभार संभालते ही, इस मसले पर जारी गतिरोध को तोड़ने की पहल की. उन्होंने इसके लिए बीजेपी के उदारवादी हिंदू नेता भैरोंसिंह शेखावत के साथ मिलकर किया. चंद्रशेखर और भैरोंसिंह शेखावत के बीच अच्छी मित्रता थी.

पवार लिखते हैं कि चंद्रशेखर ने इस मुद्दे के हल के लिए सम्भावित पहलकदमी की दृष्टि से मुझे और भैरोंसिंह शेखावत को दिल्ली बुलाया. उन्होंने शेखावत से बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के नेताओं के साथ एकांत में बात करने को कहा. मुझे भी ‘राम जन्मभूमि न्यास’ के नेताओं से एकांत में बात करने को कहा गया.

ऐसी योजना इसलिए बनाई गई, क्योंकि मुसलमान समुदाय के साथ शेखावत की कुछ एकता थी. वहीं, राम जन्मभूमि न्यास का नेतृत्व आरएसएस के मराठी मोरोपन्त पिंगले कर रहे थे और मैं भी मराठी था. इसी मद्देनजर उन्होंने दोनों नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी थी.

पवार लिखते हैं कि शेखावत ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के नेताओं के साथ एक पर एक अनेक बार वार्ता की और मैंने पिंगले और उनके साथियों के साथ एकांत में कई बठकें कीं. हम लोग एक साझा बिन्दु (कॉमन प्वाइंट) पर पहुंच गए थे. इसके बाद दोनों तरफ के पदाधिकारियों के साथ कुछ संयुक्त मीटिंगें आयोजित हुईं. दोनों तरफ के लोगों को एक साथ बैठकर वार्ता के लिए तैयार करने में शेखावत ने अहम भूमिका निभाई.

पवार कहते हैं, ‘मुझे ज्ञात हुआ कि इस प्रक्रिया में उन्होंने आरएसएस वालों को कुछ कठोर शब्द भी कहे. इस विवादित ढांचे के एक तरफ भगवान राम की मूर्ति रखकर हिंदू प्रार्थना और कीर्तन आदि करते हैं तथा दूसरी तरफ मुसलमान नमाज अता करते हैं.’

वो कहते हैं कि इस बात को ध्यान में रखते हुए इस सुझाव पर जोर दिया गया कि इस विवादित ढांचे को स्मारक के रूप में रखा जाए और हिंदुओं तथा मुसलमानों, दोनों को अलग-अलग मंदिर और मस्जिद निर्माण करने और अपने-अपने धार्मिक कार्यों के लिए भूमि आवंटन कर दी जाए.

बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी और राम जन्मभूमि न्यास, दोनों पक्षों के नेता इस सुझाव पर सहमत हो गए थे. अब इस बात को आगे बढ़ाना था ताकि लंबी अवधि से उलझा यह मुद्दा हल हो सके. अफसोस, ऐसा नहीं हो सका.

दरअसल मार्च, 1991 में कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया और चंद्रशेखर के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई.  यदि चंद्रशेखर की सरकार छह माह या इससे कुछ अधिक दिनों तक बनी रहती तो यह विवादित मुद्दा निश्चय ही सुलझा लिया जाता. इस सरकार के गिर जाने के बाद अवरुद्ध हुई प्रक्रिया को दोबारा शुरू नहीं किया जा सका.

चंद्रशेखर के नेतृत्व वाली सरकार के गिर जाने के बाद 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा ढहा दिया. बाबरी मस्जिद के विध्वंस और अपने पूरे कार्यकाल पर नरसिम्हा राव ने किताब भी लिखी, जिसके मुताबिक वो चाहते हुए भी इस घटना को रोक नहीं पाए और ये बात उन्हें देर तक कचोटती रही.

वाजपेयी के दौर में बातचीत

अटल बिहारी वाजयेपी के सत्ता में आने के बाद ये मामला एक बार फिर सुगबुगाने लगा. मामले की गंभीरता को समझते हुए वाजपेयी ने प्रधानमंत्री कार्यालय में अयोध्या विभाग का गठन किया और वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को दोनों पक्षों से बातचीत के लिए नियुक्त किया. हालांकि वो भी नतीजे तक नहीं पहुंच सके.

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com