घड़ियाल पर पहली PHD करने वाला प्रदेश में, विशेषज्ञ बाहर से बुलाए

प्रदेश में घड़ियाल पर पहली पीएचडी आरके दीक्षित ने की। वे चंबल में 40 से ज्यादा घड़ियालों को रेस्क्यू करने के अभियान में सफल भी रहे। देश भर में उनका नाम घड़ियाल विशेषज्ञों के तौर पर जाना जाता है। शर्मा के अलावा भी प्रदेश में घड़ियालों पर बेहतर काम करने वालों की लंबी लिस्ट है। इसके बावजूद वन विभाग के अफसरों ने उत्तरप्रदेश के इटावा और लखनऊ से टीम बुलाई।

बता दें कि बीते सप्ताह भोपाल के कलियासोत डैम में दो घड़ियालों के मुंह में जाल फंसा था। इसके लिए मप्र वन्यप्राणी विभाग, भोपाल सामान्य वन मंडल के अफसरों ने स्थानीय विशेषज्ञों को महत्व नहीं दिया और बाहर से टीम बुलाई थी। यह टीम टर्टल सरवाइवल अलाइंस (टीएसए) के नेतृत्व में गठित की थी। इस टीम के लिए अफसरों ने दो दिन तक इंतजार भी किया था।

ये हैं प्रदेश के पास अनुभवी विशेषज्ञ

प्रो. आरजे राव: कछुए पर पीएचडी की। चंबल में 35 साल तक घड़ियाल समेत अन्य वन्यप्राणियों पर का अच्छा काम करने का अनुभव रखते हैं। इनके निर्देशन में दो दर्जन छात्र अलग-अलग विषयों पर चंबल में पीएचडी कर चुके हैं। वर्तमान में बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी में कुलपति हैं।

डॉ. आरके शर्मा: घड़ियाल सेंचुरी में 1979 से 2016 तक रिसर्च अधिकारी रहे। घड़ियाल पर मप्र में सबसे पहले पीएचडी की। घड़ियालों के रहवास, रेस्क्यू, संरक्षण व प्रजनन पर इनके अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 70 शोध पत्र प्रकाशित हुए। लखनऊ, इटावा से आई टीम के कुछ लोगों ने इन्हीं के निर्देशन में काम किया है।

डॉ. एलएके सिंह: चंबल के घड़ियालों पर पीएचडी की। प्रदेश में सालों तक वन्यप्राणियों के क्षेत्र में अच्छा काम करने का अनुभव रखते हैं। अब उड़ीसा में हैं।

डॉ. सीताराम टैगौर: अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ के क्रोकोडाइल विशेषज्ञ समूह के सदस्य हैं। 15 साल से चंबल, यमुना, गंगा नदी में जलीय जीवों पर काम करने का अनुभव रखते हैं। प्रदेश के श्योपुर जिले के ही रहने वाले हैं।

बीसी चौधरी: चंबल में लंबे समय तक काम किया। वाइल्ड लाइफ ऑफ इंडिया में वैज्ञानिक रहे। अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

डॉ. एसए हुसैन: चंबल में जलीय जीव उदबिलाव पर पीएचडी की। लंबा अनुभव।

डॉ. संदीप बेहरा: चंबल में पाई जाने वाली डाल्फिन पर देश में पहले पीएचडी करने वाले अनुभवी हैं। घड़ियालों पर भी काम।

जिस पर कार्रवाई हुई, उनके ही नेतृत्व में बुलाई टीम

टीएसए के प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ. शैलेंद्र सिंह के नेतृत्व में टीम बुलाई थी। बता दें कि अक्टूबर 2018 में डॉ. सिंह पर मप्र राज्य जैव विविधता बोर्ड के सदस्य सचिव आर श्रीनिवास मूर्ति ने कार्रवाई की थी। बाद में डॉ. सिंह ने अनुमति ले ली थी। डॉ. सिंह ने खुद स्वीकारा है कि उन्हीं के निर्देशन में टीम भेजी गई थी

अधिकारियों ने एक बार भी मदद नहीं मांगी। हमारे प्रदेश का मामला था, बिना शुल्क के काम करते। प्रदेश के लोगों को बढ़ाना चाहिए।

– डॉ. आरके शर्मा, (घड़ियाल पर प्रदेश में पहले पीएचडी करने वाले)

वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार ही टीम बुलाई थी। आगे ध्यान रखेंगे। प्रदेश के अनुभवी विशेषज्ञों की ही मदद लेंगे।

-डॉ. एसपी तिवारी, सीसीएफ भोपाल वन वृत्त

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