लचर निगरानी तंत्र और पुख्ता आंकड़ों का अभाव एंटीबायोटिक के प्रति बढ़ रही प्रतिरोधक के खिलाफ भारत की लड़ाई को कमजोर कर रहा है। ऐसा नहीं है कि भारत को एंटीबायोटिक के अत्यधिक प्रयोग के खतरे का अहसास नहीं है। इसके लिए दो साल पहले ‘नेशनल एक्शन प्लान’ भी बन चुका है और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने ‘मन की बात’ में इसके खतरे के प्रति आगाह कर चुके हैं। लेकिन धरातल पर एंटीबायोटिक के दुरुपयोग को रोकने का ठोस प्रयास होता नहीं दिख रहा है।
मुर्गीपालन, मछलीपालन में भी इस्तेमाल
देश में एंटीबायोटिक की मार चौतरफा है। सीधे तौर पर सामान्य बीमारियों में बिना डॉक्टर की सलाह के ली जाने वाली एंटीबायोटिक दवा के अलावा मुर्गीपालन, मछली पालन और अन्य जानवरों में भी इसका बहुतायत से प्रयोग हो रहा है। जाहिर है एंटीबायोटिक के अत्यधिक प्रयोग से संबंधित बैक्टीरिया में इसके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता भी तेजी से बढ़ रही है। एक बार प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने के बाद उस बैक्टीरिया के पीड़ित व्यक्ति का इलाज नामुमकिन हो जाता है। सरकार के पास यह आंकड़ा तो है कि किस-किस बैक्टीरिया में किस-किस एंटीबायोटिक के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता पाई गई है। स्वास्थ्य मंत्रलय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि एंटीबायोटिक के प्रति बढ़ते प्रतिरोध पर पुख्ता डाटा जुटाने की कोशिश की जा रही है और देशभर में लगभग तीन दर्जन प्रयोगशालाओं को यह पता लगाने की जिम्मेदारी दी गई है कि किन-किन बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो रही है। ताकि ऐसे बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों के वैकल्पिक इलाज का रास्ता ढूंढा जा सके।
सरकार के पास नहीं मरने वालों के आंकड़े
सरकार के पास इसका कोई आंकड़ा नहीं है कि एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोधक क्षमता के कारण इलाज नहीं हो पाने से हर साल देश में कितने व्यक्तियों की मौत होती है। जाहिर है आंकड़ों के अभाव में स्थिति की भयावहता को भांपना संभव नहीं है।
अधिकारियों ने माना, पूरी तरह नियंत्रित करना संभव नहीं
कई बार की कोशिशों के बावजूद स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन से इस मुद्दे पर बात नहीं हो सकी। लेकिन स्वास्थ्य मंत्रलय के वरिष्ठ अधिकारी मानते हैं कि एंटीबायोटिक के प्रयोग को पूरी तरह नियंत्रित करना संभव नहीं है। भारत ने 2013 में एंटीबायोटिक के दुरुपयोग को रोकने के लिए इसे एक नई एच-1 श्रेणी के ड्रग में शामिल कर दिया था। इसके तहत एंटीबायोटिक दवाओं के स्टिप पर लाल लाइन और आरएक्स लिखना अनिवार्य कर दिया ताकि दुकानदार सिर्फ डॉक्टर द्वारा लिखे जाने पर ही यह दवा बेच सके। लेकिन इसका भी कड़ाई से पालन नहीं कराया जा सका। उनके अनुसार, भारत में गरीबों की बड़ी संख्या और अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाओं तक उनकी पहुंच का अभाव एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोधक क्षमता के खिलाफ लड़ाई की राह में सबसे बड़ी बाधा साबित हो रही है। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि गरीबों तक सस्ते एंटीबायोटिक की पहुंच को पूरी तक रोकना संभव नहीं है।
एफएएसएसआइ ने भी बनाया कड़ा नियम
निगरानी तंत्र का अभाव मुर्गीपालन, पशुपालन और मछली पालन में एंटीबायोटिक के दुरुपयोग को नियंत्रित नहीं कर पाने की प्रमुख वजह है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएएसएसआइ) ने मुर्गी और पशुओं के चारे में एंटीबायोटिक की मात्र निर्धारित करने का कड़ा नियम बना दिया है। लेकिन सरकार के नेशनल एक्शन प्लान में ही स्वीकार किया गया है कि चारे में किसानों द्वारा एंटीबायोटिक मिलाने की स्थिति में निगरानी का कोई तंत्र नहीं है। नेशनल एक्शन प्लान में एंटीबायोटिक के उपयोग के प्रति देशभर में जागरूकता फैलाना भी शामिल था, लेकिन दवा दुकानों से लेकर अस्पतालों तक में यह कहीं नजर नहीं आता।